लेखिका की सोच....
लेखिका : ज्योतिषाचार्य रश्मि चौधरी
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पितृ पक्ष और पितरों को लेकर बहुत सारी बाते हर इंसान के मन मे आती हैं
सनातन धर्मावलम्बी श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष में बहुत कुछ करते हैं ,
कई लोगों के मन मे इस समय को लेकर एक डर सा बना रहता है कि कहीं हमारे पितृ हमसे नाराज़ न हो जाएं या हमे उनके कोप का भागी बनना पड़े..
पर आज मैं अपनी सोच और इस पितृ पक्ष में हुए अपने अनुभवों के आधार पर कुछ लिखने का साहस कर रही हूं।
मित्रों सबसे पहले तो हमे ये अवश्य याद रखना चाहिए कि अब जो पितृ रूप में हैं वो कभी हमारे ऐसे अपने थे जिनके बिना हम अपने जीवन की कल्पना भी नही कर सकते थे ,वो हमारी कितनी फ़िकर करते थे और हर हाल में हमे ख़ुश और सुखी देखना चाहते थे तो हम कैसे मान लें कि वो अब हमसे नाराज़ होकर हमे श्राप दे सकते हैं ?
वो अभी भी (जब वो केवल शरीर से हमारे साथ नही है,) हमेशा ही हमे प्रसन्न और स्वस्थ ही देखना चाहेंगे |
आवश्यकता बस इस बात की है कि जैसे केवल अभी भी हम अपने परिवारी जनों को हर सुख दुख में याद करते हैं
वैसे ही उन्हें भी याद करेl
हमारे पितर बस इतना ही चाहते हैं कि हम अपनी हर खुशी उनके साथ बांटे और हर दुख की घड़ी में उनसे प्रार्थना करे कि वो हमारा उचित मार्ग दर्शन करें
बस इन दिनों में हर दिन अपने प्रिय जनों के निमित्त (जो अब हमारे पितृ रूप में हमारे साथ हैं)
दीपदान और जलार्पण अवश्य करें।
ऐसा करने से हमे अनुभव होगा कि कोई शक्ति है जो हमे मानसिक रूप से मजबूत बना रही है और हमारे बहुत से रुके, अटके हुए काम अपने आप ही बनने लगे हैं और हमे आश्चर्य होगा कि अरे ये काम तो मेरे कई बार लाख प्रयत्न करने पर भी नही हुआ तो अब एकाएक कैसे राह मिल गई और मेरा काम बन गया....।
बस यहीं पर हमें मानना होगा कि ये हमारे पितृ ही है
जिन्हें हमारी परेशानी का एहसास हुआ और उन्होंने हमारी मुश्किल घड़ी में अपना आशीर्वाद देकर हमारा कार्य सम्पन्न करवाया
तो पितृ पक्ष, या पितरो से बिल्कुल भी भयभीत न हों
बस उन्हें याद करे उनके प्रति श्रद्धा भाव बनाये रखें उन्हें नमन करें
और जब कभी भी पितृ पक्ष में हमारे कार्य एकाएक बनने लगे तो मैं तो कम से कम यही मानूँगी कि पितरो का आशीर्वाद हमे मिल रहा है और वो हमारे हर सुख दुःख में हमारे साथ ही हैं।
जय पितृ देव
"सर्व पितृ देवताभ्यो नमः ॐ शांति।"
(लेखिका की ओर से : मेरे अपने अनुभव हैं आवश्यक नहीं कि हर कोई मेरी बातों से सहमत हो और कोई भी मेरी बात को अन्यथा न लें)