लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं चर्चित पर्यावरणविद हैं)
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किसी के बहकावे में ना आयें कि मुझे कुछ नहीं होगा। सच्चाई यह है कि हम सब तभी बच पायेंगे, जब हम सब देशवासी एकजुट हो बचाव के नियमों का पालन कर इस महामारी का मुकाबला करेंगे।
इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता कि देश में कोरोना नामक वैश्विक महामारी के संक्रमितों की तादाद में बढ़ोतरी हालात की भयावहता का सबूत है।
अब जबकि देश में सर्वत्र वह चाहे माल हो, मैट्रो हो, साप्ताहिक बाजार हो या आवागमन के अन्य सभी साधन, केवल सिनेमा और स्वीमिंग पूल को छोड़कर सभी को कोरोना काल की बंदिशों से मुक्ति देने का सरकार ने निर्णय कर ही लिया है, और तो और वह आगामी दिनों में स्कूल-कालेज खोलने पर भी विचार कर रही है, वह भी तब जबकि देश में कोरोना संक्रमितों का सरकारी आंकड़ा सत्तर हजार रोजाना से भी ऊपर पहुंच गया है, समझ से परे है। लगता है अब सरकार ने हाथ खड़े कर दिये हैं और आत्मनिर्भर बनने के नाम पर देशवासियों को मरने के लिए छोड़ दिया है।
सबसे बड़ी बात यह है कि सरकारी अस्पतालों की बदहाली से, वहां की बद इंतजामी से देश बखूबी परिचित है। उत्तर प्रदेश के अस्पतालों की दुर्दशा को तो प्रदेश के विधान परिषद् सदस्य साजन सदन मे बयां कर ही चुके हैं। यह हालत कमोबेश पूरे देश के अस्पतालों की है। देश की चिकित्सा व्यवस्था की रैंकिंग के बारे में तो दुनिया में डंका बज रहा है। जहां अस्पतालों में स्ट्रेचर का अभाव हो, एम्बुलेंस खराब पड़ी हों, जरूरत के समय जगह पर न पहुंचती हों, जहां की दवाइयों की गुणवत्ता संदेह के घेरे में हो, जहां के अस्पतालों के बिस्तरों पर मरीज नहीं कुत्ते आराम फरमाते हों, जहां सफाई के नाम पर गंदगी का साम्राज्य हो, डाक्टरों-नर्सों की हजारों-लाखों की तादाद में कमी हो, गांवों के स्वास्थ्य केन्द्र पर कभी-कभार ही डाक्टर जाता हो, जहां का सारा जिम्मा एक ए एन एम पर हो, वहां कोरोना के लिए बनाये गये क्वाराइन्टाइन सेन्टर के एक कमरे में आठ- आठ रोगी हों, एक शौचालय हो और वहां पानी तक का इंतजाम न हो, वहां कोरोना को रोक पाना आसमान से तारे तोड़ने के समान है।
यह सब उस देश का हाल है जो विकास का बीते छह सालों से ढिंढोरा पीट रहा है और पड़ोसी चीन हमारे इलाके में घुसा बैठा है और हम कहते नहीं थकते कि ऐसा कुछ नहीं है और आने वाले दिनों में देश चीन को नाकों चने चबवा देगा। बात कोरोना पर अंकुश की है, अंकुश लगे भी तो कैसे जब देशवासी बचाव के नियम-कायदों तक का पालन करना अपमान समझते हैं। वह चाहे सवाल मास्क पहनने का हो, सोशल डिस्टैंसिंग का हो, इसे तो वह मूर्खता करार देते हैं। उनके अनुसार इससे कुछ नहीं होता। फिर बाजारों की भीड़ सारे नियम-कायदों की धज्जियां उड़ा रही है। ऐसे में सारे संसाधनों, माल, बाजारों, बस-रेल सहित आवागमन के साधनों को बंदिश मुक्त कर देना क्या कोरोना के विस्तार को आमंत्रण देना नहीं है।
इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता कि देश में कोरोना नामक वैश्विक महामारी के संक्रमितों की तादाद में बढ़ोतरी हालात की भयावहता का सबूत है। फिर इसकी दवा भी अभी तक ईजाद नहीं हो पाई है। भले उसका परीक्षण जारी है, यह दावा किया जरूर जा रहा है। बहुत तेजी लाई गयी और परीक्षण कामयाब रहा तब भी उसके बाजार में आने में कम से कम छह से बारह महीने का समय लग ही जायेगा। देश में कोरोना संक्रमितों की तादाद यदि इसी तरह रोजाना बढ़ती रही तो आने वाले दिनों में यह आंकड़ा करोड़ को पार कर जायेगा। इसकी आशंका से ही तबाही का मंजर नजर आने लगता है। इसलिए इस आपदा का मुकाबला हम सब उसी हालत में कर सकते हैं जबकि हम संयम के साथ बचाव के नियमों का पालन करें।
यह साफ है कि नियमों का पालन न करके हम अपने जीवन से ही खिलवाड़ कर रहे हैं। जाहिर है इसका खामियाजा परिवार और हमारी संतानों को भुगतना पड़ेगा। प्रशासन, सरकार और मुख्यमंत्री -प्रधानमंत्री ने तो अब घरों में ही क्वाराइंटाइन होने की कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया है। वह तो शुरूआत से ही बचाव के नियमों के पालन की देशवासियों से अपील कर रहे हैं। हमारा कर्तव्य है कि संकट की इस घड़ी में हम अब भी चेत जायें और अपनी जिंदगी से ना खेलें। यह जान लो कि देश तबाही की ओर बढ़ रहा है। यह भलीभांति जान-समझ लो। इसलिए एक दूसरे से ना मिलो, ना हाथ मिलाओ, दिन में कम से कम बीस बार साबुन या सैनिटाइजर से हाथ धोओ। एक-दूसरे से कम से कम दो मीटर की दूरी बनाये रखो। अगर खांसी, बुखार आदि है तो डाक्टर की सलाह लो। घर बाहर मास्क का इस्तेमाल करो।
अब यहां सरकार की यहबात समझ नहीं आती कि एक ओर तो वह कहती है कि बहुत जरूरत हो तभी घर के बाहर जाओ। जबकि वह माल, बाजार, बस, रेल, हवाई जहाज सभी को चलाने की इजाज़त दे रही है। ऐसी हालत में सोशल डिस्टैंसिंग के नियम का क्या होगा। हवाई यात्रा में भी इस नियम की खुलेआम धज्जियां उडायी जा रही हैं। वहां न बच्चों के जाने पर रोक है और ना ही साठ के ऊपर की उम्र के बुजुर्गों के जाने पर बंदिश है। सब कुछ सामान्य सा है।
यह मानकर लीजिए कि कोरोना महामारी से जल्दी छुटकारा नहीं मिलने वाला। डब्ल्यूएचओ और दुनिया के वैज्ञानिक भी इसका संकेत दे चुके हैं। इसलिए किसी के बहकावे में ना आयें कि मुझे कुछ नहीं होगा। सच्चाई यह है कि हम सब तभी बच पायेंगे, जब हम सब देशवासी एकजुट हो बचाव के नियमों का पालन कर इस महामारी का मुकाबला करेंगे। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)