daylife.page
जब से तोताराम के बच्चों ने उसे एक पुराना स्मार्ट फोन दिया है तब से वह मोदी जी की वोट डालने के बाद दागी अंगुली या फिर बेटी के साथ सेल्फी लेने जैसे राष्ट्रीय कर्त्तव्यों के पालन करने की सलाह के बिना भी कुछ न कुछ अपने स्मार्ट फोन पर हमें दिखाता रहता है |अब यह पता नहीं कि यह फोन चीन का है या किसी और देश का और इसमें डाला गया ऐप किस देश का है ? हम तो इतना जानते हैं कि चीन ने एक हजार करोड़ रुपए दे रखे हैं इसलिए तय अवधि से पहले भारतीय क्रिकेटरों की छाती पर से 'OPPO' को हटाना किसी के वश का नहीं है |
आज तो कमाल हो गया |तोताराम दोपहर में 42 डिग्री तापमान में ही हमें एक फोटो दिखाने आ गया | बोला- देख, कौन है ?
हमने कहा- पता नहीं |कुछ-कुछ 'मामाजी' के जैसे लगते हैं |लेकिन ये कौन लोग हैं जो इन्हें घेरकर इस गिलास में 'कुछ' पिला रहे हैं ? यह 'कुछ' क्या है ? ऐसे लगता है जैसे उच्च वर्ग के कुछ लोग किसी दलित वर्ग के युवक को किसी अपराध के फलस्वरूप अपनी त्वरित जातीय अदालतों के तहत सजा सुनाकर कोई 'अपेय' पदार्थ पिला रहे हैं |
बोला- क्या बात करता है ? ये कोई दलित नहीं हैं |ये तो पंद्रह साल मध्यप्रदेश पर निरंतर शासन करने वाले लोकप्रिय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह उर्फ़ 'मामाजी' हैं |
हमने पूछा- तो इनको घेरे हुए ये कौन लोग हैं जो इन्हें गिलास से कुछ पिला रहे हैं ? और इस गिलास में कौन-सा पदार्थ है जो शिवराज जी पीना नहीं चाहते ?
बोला- यह तो मुझे पता नहीं है लेकिन अभी मंत्रीमंडल के विस्तार से एक दिन पूर्व शिवराज जी ने एक ट्वीट किया है कि भगवान शंकर ने विष पी लिया है |अब इस कलयुग में शिवराज जी के अतिरिक्त और बचा ही कौन है जो इस सृष्टि के सकल चराचर की रक्षा के लिए विष पी ले |
हमने कहा- इससे पहले एक बार राहुल गाँधी ने भी कहा था कि कांग्रेस ने साठ साल सत्ता का ज़हर पिया है |हमारे राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी एक बार कहा था कि यह पद मुकुट नहीं, काँटों का ताज है | बेचारी भाजपा भी केंद्र में जनसेवा के लिए पिछले छह साल से रोज विष पी रही है |कुछ लोग तो नब्बे साल की आयु में भी सत्ता का विष पीने के लिए इस धराधाम और दिल्ली में चिपके हुए हैं |लेकिन एक बात समझ में नहीं आई |पुराणों में तो सबसे पहले विष निकला था जिसे संसार की रक्षा से देवताओं के आग्रह पर शिव ने पिया था |लेकिन इन आधुनिक शिव ने तो पहले पंद्रह साल तक जी भरकर अमृत पिया |अब जब विष्णु कमलनाथ सत्ता का विष पीने आ गए तो शिवजी फिर जोड़तोड़ लगाकर विष पीने आ गए |
हमें तो लगता है कि सत्ता विष नहीं, बल्कि एक स्वादिष्ट अमरफल है जिसे सेवा के नाम पर येन केन प्रकारेण हर चतुर आदमी पीना चाहता है |शिव से तो देवताओं ने आग्रह किया था क्योंकि विष पीना अप्सराओं को भोगने वाले देवताओं के वश का थोड़े ही है |
बोला- मास्टर, मन.......
हमने तोताराम को बीच में ही लपक लिया, कहा-अब मनमोहन जी को भूल जा |उनकी तो मोदी जी क्या, रविशंकर प्रसाद तक नहीं सुनते |
बोला- मेरा वाक्य तो पूरा होने दे |मेरा मतलब न तो 'मन' है और न ही 'नमो' है |मैं तो कह रहा था- भले ही सत्ता ज़हर है लेकिन मन करता है कि यदि मिल जाए तो मरने से पहले दो बूँद ही सही, एक बार गटककर देखें तो !
हमने कहा- तोताराम, ये जो विष पीते हुए शिव को घेर कर खड़े देवगण हैं वे भी शायद तेरी तरह विष की दो-चार बूँदों के ख्वाहिशमंद हैं | (लेखक के अपने व्यंगात्मक विचार हैं)
लेखक : रमेश जोशी
सीकर (राजस्थान)
प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए.