घरेलू हिंसा का एक प्रमुख कारण है शराब


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मैं घरेलू हिंसा का पहला कारण मानता हूं- शराब की लत। पुरुषों की शराब पीते रहने की जिद्द और स्त्रियों का लगातार विरोध। इस पर मेरे गुरुग्राम निवासी मित्र  अशोक विरमानी की जिज्ञासा थी कि यदि पत्नी पैग बना कर दे तो उसको प्रोत्साहित करने की क्या योजना है? इस बारे  में मेरा कहना यह है कि अशोक जी ! बच्चे की पहली पाठशाला घर ही है। पिता उसका आदर्श होता है। जो पिता करता है, वह बच्चे पहले छिपकर करते हैं और बाद में पिता के सामने करने लगते हैं। उस समय पिता में बच्चों को रोकने का नैतिक अधिकार और साहस भी नहीं रहता। ऐसी स्थिति में पिता की अनुपस्थिति में मां बच्चे को समझा सकती है कि तेरे पिता गलत आदत से मजबूर हैं। तुझे शराब को हाथ नहीं लगाना है। यदि मां पैग बनाने लगे तो ऐसी माताओं की संतान स्कूल ना जाकर शराब बेचने वाली दुकानों के आगे खड़ी मिलेंगी। 


मेरा एक परिचित परिवार बीकानेर (राजस्थान) में रहता है। उसमें पत्नी पैग बनाकर पति को देती थी। कुछ वर्षों में पति का लीवर खराब हो गया। आज हालत यह है कि वह वर्षों से खाट पकड़े हुए हैं। उनके दो बेटे थे। छोटे बेटे ने पिता का अनुकरण पहले किया। अब वह जयपुर में कई बीमारियों के इलाज पर हजारों रुपए फूंक चुका है। एक दिन नशे में पत्नी पर हाथ उठा दिया। पत्नी ने पिता को फोन कर दिया। चार लोग रात को कार में आए और जंवाई को पीट कर चले गए। सास ने एक दिन बड़ी बहू पर हाथ उठाने की कोशिश की। शायद नशे में। बड़ी बहू एम.ए. पास थी। पास के महिला थाने में पहुंच गई। थाने की महिला पुलिस आ गई। सास भागकर पास के मंदिर में हो रहे कीर्तन में छिप गई। बड़े बेटे को पुलिस ने नहाने भी नहीं दिया और महिला पुलिस बनियान और जांघिये में ही उसकी पकड़ कर ले गई। शनिवार का दिन था पुलिस ने रविवार को पीटा। अदालत में सोमवार को पहली पेशी में सात दिन की हवालात के लिए पुलिस रिमांड मांग लिया। थाने में बड़ा बेटा पत्नी के पैरों में लिपट गया - 'बड़ा मारा। मुझे छुड़ा लो।' पत्नी को दया आ गई। शिकायत वापस ले ली। उसके बाद सास से बड़ी बहू अलग रहने लग गई। 



छोटी बहू और सास के बीच तनातनी आज भी जारी है। पैग पिलाने का नतीजा आपने देखा अशोक जी। 6 प्राणी घुटन भरी जिंदगी जी रहे हैं। अब सास को बड़ी बहू की याद सता रही है और अच्छा दहेज लाने वाली छोटी बहू ताड़का नज़र आने लगी है। छोटी बहू को सास में शूर्पणखा दिखाई देती है। पति और छोटा बेटा बेदम हुए खाटों पर पड़े हैं। शराब छूट गई है। मगर राजस्थानी में कहावत है- 'निकल गई गणगौर, मौल्या मोड़ै आयो रै।' "यानी गणगौर का जुलूस निकल गया है अरे बंदर! तू देर से पहुंचा है।" मेरा कहना है कि यदि समय पर शराब की बुरी आदत छोड़ देते तो दो पीढ़ियां बर्बाद न होतीं। 



तीसरी पीढ़ी के भविष्य पर भी प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है। घर में न एकता है, न परस्पर सम्मान, न चैन है। केवल एक दूसरे के प्रति घृणा, तिरस्कार और बदला लेने के लिए मौके का इंतज़ार है। पैग पिलाने लायक ताकत और पैसे की गर्मी अब नहीं रही है। स्त्रियां पैग दो कारणों से पिलाती हैं। पहले, पति की मार खाने से बचने के लिए। दूसरे, पति वेश्याओं के यहां न जाए इसके लिए। मजबूरी कई कारणों से आती है। कारण कोई भी हो। भोगना तो पहले स्त्रियों को ही पड़ता है। बाद में बच्चों को भी इसके दुष्प्रभाव झेलने पड़ते हैं। अन्त में शराबी को बीमारियों की पीड़ मरते दम तक दु:ख देती है। पैसों की बर्बादी तो होनी ही है। 


गौरतलब यह भी है कि इस कारण समाज को भी एक इकाई के अनुत्पादक होने की सज़ा मिलती है। अस्पतालों में भी भीड़ बढ़ती है सो अलग। बच्चे अच्छे संस्कार न मिलने से गलत रास्ते पर चले जाते हैं। रिश्तेदारों में छवि बिगड़ जाती है। फिर वह मान कभी नहीं  मिलता। मिलता क्या है थोड़ी देर वास्तविकता से भागने का मौका। नशा उतरने पर पति को झाड़ू , डंडा या बेलन पकड़े देखकर हाथ पैर तो जोड़ने ही पड़ते हैं। क्या है अशोक जी! बताये। अब गाइए। 'अंबे तू है जगदम्बे काली। जय दुर्गे खप्पर वाली। सौ सौ सिंहों से तू बलशाली। है अष्ट भुजाओं वाली। वरद हस्त सर पर रख दो, मां संकट हरने वाली। सबकी बिगड़ी बनाने वाली, लाज बचाने वाली।' यह शराब का दुष्परिणाम नहीं तो और क्या है। (लेखक के अपने विचार हैं)



लेखक : डा. रामजीलाल जांगिड


नई दिल्ली 


(लेखक प्रख्यात शिक्षाविद एवं विचारक हैं।)