लेखक : डॉ. पी.डी. गुप्ता
पूर्व निदेशक ग्रेड साइंटिस्ट, सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, हैदराबाद
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एंटीबायोटिक दवाओं के विकल्प हैं माइक्रोबायोटा
कोशिका मानव शरीर एक इकाई और औसत मानव के शरीर में लगभग 30 से 40 ट्रिलियन ऐसी कोशिकाएं होती हैं। इससे 10 गुना बैक्टीरिया ज्यादा हमारे शरीर के अंदर और शरीर बाहर रहते हैं। क्या हम इनको भी शरीर की कोशिकाओं में शुमार कर सकते हैं ? क्योंकि यह एक निर्विवादित सत्य है कि ये मानव के शारीरिक क्रिया प्रणाली में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और शरीर इनके लिए 'होस्ट' का कार्य करता है। ये 70 ट्रिलियन बैक्टीरिया यूँही चुप बैठे नहीं रहते हैं।
जन्म से मनुष्य शरीर में बहुत कम बैक्टीरिया होते हैं और पाचन प्रणाली भी बैक्टीरिया रहित ही होती है। शिशु की इस मूल स्थिति को माँ प्रभावित करती है और शिशु में शुरूआती माइक्रोबायोटा माँ से ही आते हैं । जब पहली बार उसे माँ का दूध पिलाया जाता है और शिशु के गर्भ से आते समय कुछ बैक्टीरिया उसको माँ से मिल जाते हैं (बशर्त है की शिशु ऑपरेशन से ना हुआ हो) ये दोनों ही तथ्य उसकी पाचन प्रणाली को बैक्टीरिया के लिए स्टोर करने का काम करते हैं, लेकिन ये सभी बैक्टीरिया हानिकारक नहीं होते हैं, बल्कि इनमें से अधिकतम लाभदायक ही होते हैं। जैसे-जैसे मनुष्य बढ़ता जाता है और उसका शरीर नए पदार्थों और बैक्टीरिया की नई प्रजातियों से परिचित होता जाता है, वैसे-वैसे वे नई बैक्टीरिया प्रजाति और संख्या भी उसकी आँतों में बढ़ते रहते हैं। इस तरह से मनुष्य की आरंभिक प्राकृतिक बचाव तंत्र (इम्यून सिस्टम) की शुरुआत हो जाती है। मनुष्य और बैक्टीरिया का यह सहअस्तित्व और सहजीवन का सम्बन्ध, जो उसके भ्रूणीय या नवजात अवस्था में निर्मित होता है, वह उसके व्यस्क होने तक ही नहीं बल्कि उसके आगे की पीढ़ियों तक भी जारी रह सकता है। आंत या पाचनतंत्र का यह माइक्रोबायोटा (बैक्टीरिया + वायरस + और कई प्रकार के सूक्ष्म जीवाणु) इसके स्वास्थ्य और सम्पूर्णता को बनाये रखने में आवश्यक होते हैं।
आँतों (GI) में पाए जाने वाले बैक्टीरिया की संख्या मनुष्य के शरीर में स्थित कोशिकाओं की संख्या से अधिक होती है। मनुष्य के आँतों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया का वजन लगभग 2 कि. ग्रा. होता है। मनुष्य के आंतों (GI) में लगभग 400-1000 प्रकार की प्रजातियां पायी जाती है। वास्तव में पाचनतंत्र के इस माइक्रोबायोटा को 'भुलाये गए' मानव शारीरिक के अंग के रूप में माना जाता है। मानव शरीर के रख रखाव में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका महत्वपूर्ण है। इनका संतुलन बिगड़ने से कैंसर तक होने की सम्भावना हो सकती है।
तेजी से प्रगति कर रहे माइक्रोबायोलॉजी और आनुवंशिक (जेनटिक) शोध तकनीकियों ने माइक्रोबियल तथा उसके चयापचय (मेथाबोलिजिन) और विकास पर प्रभाव डालता है। एंटीबायोटिक का युग सर अलेग्जैंडर फ्लेमिंग द्वारा खोजे गए पेनिसिलिन दवा के साथ हुआ है। इस दवा ने संक्रामक रोगों के उपचार का दृष्टिकोण पूरी तरह से बदल के रख दिया है। हालाँकि, एंटीबायोटिक दवाओं के अनुचित और अति प्रयोग ने एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया यानि 'सुपर बग' के उभरने में योगदान दिया है। इसके फलस्वरूप बहुत सारी एंटीबायोटिक दवाइयां कई बैक्टीरिया प्रजातियों के लिए बेअसर होती गईं। हाल ही में, शोधकर्ताओं ने एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग किये बिना बैक्टीरिया को नष्ट करने के लिए कुछ विकल्प सुझाए हैं। प्रतिस्पर्धा अस्तित्व (CE) माइक्रोबियल परिस्थिति की तंत्र, जो मानव के अंदर सह निवास करता है- वह रोगजनक तथा हितकारी या लाभदायक सूक्ष्मजीवों के बीच संतुलन बनाये रखता है। जब यह संतुलन गड़बड़ा जाता है तो व्यक्ति बीमार हो जाता है और रोगजनक बैक्टीरिया को मारने के लिए वह एंटीबायोटिक दवा लेता है। एंटीबायोटिक दवाओं के अनुचित और ज्यादा प्रयोग के कारण प्रतिरोधी तत्व यानि 'सुपर बग' उत्पन्न होता है।
इस तरह की घटनाओं से बचते हुए संक्रामक रोगों के उपचार के लिए वैकल्पिक रणनीति विकसित की गई है, जिसमें से एक है, आंत में रोगजनक और हितकारी बैक्टीरिया का सह-जीवन का प्रतियोगी सह अस्तित्व यह फिकल (मलीय) माइक्रोबायोटा ट्रांसप्लांट (FMT) द्वारा संभव है। इसके अंतर्गत एक स्वस्थ व्यक्ति के बैक्टीरिया को प्राप्तकर्ता में प्रत्योपित किया जाता है। FMT के लिए मल के स्वस्थ्य बैक्टीरिया को एनिमा (enema) के माध्यम से या गैस्टिक ट्यूब के द्वारा शरीर में चढ़ाने या फ्रिज किए गए और सूखे सामग्री वाले कैप्सूल के रूप में बैक्टीरिया को बीमार के शरीर में पहुंचाया जाता है। FMT प्रक्रिया को प्रायोगिक रूप में अन्य मेथो बोलिक सम्बन्धी रोगों के इलाज के लिए भी काम में लिया जाता है। जिसमें बृध्दान्त्र शोध-कब्ज (कोलाइटिस-कब्ज), संवेदनशील आंत की बीमारी (Ibs-इरिटबल बवल सिंड्रोम) और अनेक न्यूरोलॉजिकल स्थितियों के लिए, जैसे कि मल्टीपल स्कलेरोसिस तथा पार्किंसन बीमारियों में आंत के माइक्रोबायोटा के असंतुलन को दूर करना शामिल है। अध्ययन के दौरान एक सीमित संख्या के मरीज, जो क्लोस्ट्रीडियम डिफ्फिसिल संक्रमण से पीड़ित हैं उनके उपचार में इस प्रक्रिया को लाभदायक पाया गया। फंगल माइक्रोबायोटा ट्रांसप्लांटेशन की कार्य प्रणाली के माध्यम से असंतुलन को (1) बैक्टीरिया के हस्तक्षेप से (2) वनस्पतियों के लुप्त घटकों की पुनर्स्थापना से (3) रोगाणुरोधी तत्वों का उत्पादन से, ठीक करने के उपाय अपनाए जाते हैं।
इस तरह ज्ञात होता है कि शरीर के प्रमुख अंग के तौर पर हमारे शरीर के अंदर और बाहर सतह पर स्थित बैक्टीरिया का अधिक भाग हमारे स्वस्थ्य रहने में प्रमुख योगदान देते हैं। हानिकारक (रोगाणु) बैक्टीरिया के साथ उनका संतुलन बिगड़ने से ही रोग हो जाते हैं।
अनुवादक : आर. चंद्रशेखर, हैदराबाद