क्या भारत ने अंतिम रूप से कमर कस ली है ? 


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चीन के बार-बार भारत को आज भी कमजोर और लाचार तक समझने की हेकड़ी के पीछे देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस काफी कुछ जिम्मेदार है। याद करें पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने अपने टेन्युअर में धूर्त चीन से आर्थिक सहयोग को देश हित में होने का हवाला देते हुए चीन को यह कहकर मोहने तथा मुदित करने की कोशिश की थी कि चीन से सीमा विवाद को तो भूल जाना बेहतर है। डोकलाम प्रकरण के समय तो कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी चीन के राजदूत से चर्चा करने जा पहुंचे थे। राहुल गांधी क्या वे शान्ति की अपील के लिए गए थे। यदि नहीं तो किस अधिकार से जबकि डोकलाम में भी चीन ने ही क़रीब पिचहतर दिनों तक बिला वजह  भारत की नींद उड़ाए रखी थी। अब राहुल गांधी यह कहकर बार बार गरज रहे हैं कि बिना हथियारों के जवानों को वहाँ क्यो भेजा गया। अब कौन इन्हें समझाए कि कोई भी सेना सरहद पर कचोरी समोसे तो खाने जाती नहीं है। हमारे वीर शहीदो के अनुशासन के तहत हाथ बंधे थे और राहुल को यह बताने की ज़रूरत बार-बार पड़ेगी क्या कि फ़ौज में अनुशासन ही सब कुछ होता है।


उसके बावजूद हमारे ज़ाबाजों सत्रह चीनियों की गर्दने मरोड़ दी। सदियों से अमनों चैन का पैगाम भारत ही दुनिया को देता रहा मगर क़रीब सत्तर सालों पहले तक क्या मिला। वर्षों तक ख़लिश तथा चुभन देते रहने वाली कुत्सित यादें। किसी का एक शेर मौजूं लगता है "तवारिख की नज़रों ने ऐसा भी दौर देखा, लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सजा पाई" जब देश के चुने पीएम ने दो बार स्पष्ट कर दिया हो कि न लदवान घाटी में कोई घुसपैठ नहीं हुई है तो नहीं हुई है और यदि कब्जे की बातेँ कहीं जा रही हैं तो उसके पुख्ता प्रमाण दिए ही जाने चाहिए वरना तो ऐसी गन्दी सियासत से देश में अराजकता भी तो फैल सकती है। कांग्रेस यह क्यों भूल जाती है कि महाराष्ट्र में उसके सहयोगी पूर्व रक्षा मंत्री शरद पवार ने भी मोदी की बातो पर पूरा यकीन जताया है। रही कम्युनिस्टो की बात तो अगर ये लोग चीन का साथ नहीं दे तो इनका हुक्का पानी बन्द भी हो सकता है। देश में कई ऐसे क्रांतिकारी मिल सकते हैं जो भारत को भी चीन बनाना चाहते हैं। नई दिल्ली के जेएनयू में ऐसे ही लोगों की इफ़रात है। सुना है राहुल भी वहाँ विजिट करने जाते रहे हैं।


दुनिया के कुछ नामचीन अखबारों ने चिंता जताई है कि भारत चीन के बीच हुआ ताज़ा रक्त रंजित संघर्ष तीसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत भी हो सकती है। इस आशंका से असहमति का कोई सवाल ही नहीं उठता क्योंकि कहा जाता रहा है कि तीसरा महायुद्ध एशिया में ही लड़ा जाएगा। यह कहना भी गौरतलब है कि यह जंग परम्परागत ढंग से नहीं लड़ी जाकर अणु युद्ध भी हो सकता है। दुनिया के लगभग सभी युद्ध विशेषकर ज़मीन के लिए ही होते रहे हैं। चीन जो कुछ सीमा पर करता रहा है वह भारत की धरती पर अवैध कब्जे की कहानी तो है। इसीलिए सोचा जाना क्यों नहीं चाहिए कि मान लीजिए मोहल्ले का गुंडा आपके आँगन पर कब्ज़ा जताने लगे तब आप क्या करेंगे तय है कि उस लफंगे की धमकियओं से आप नहीं डरेंगे तथा उन्हें खदेड़ देगे। वर्ना हो सकता है कि आपके पूरे घर य मकान को ही हड़प लिया जाए और यह गुंडागर्दी पूरे मोहल्ले के लिए भारी पड़ जाए। ट्रम्प ने मध्यस्थता के संकेत दिए हैं। रंग भेद नस्ल भेद को को लेकर फैला असंतोष पूरे अमेरिका में अभी भी जनता बेचैनी के रूप में  है।


लोग अभी भी सड़कों पर उतर रहे। चूंकि इसी साल ट्रम की दूसरी सियासी पारी का भी फै सला होगा इसलिए ट्रम्प भारत का साथ देने के पहले दस बार सोचेंगे। भले ही अपने पिछले भारत आगमन से अमेरिकी प्रवासियों का दिल जीत चुके हों। उनकी सबसे बड़ी बाधा उनके पूर्व सहयोगी द्वाराप्राकाशन के लिए जारी की गई एक किताब हो सकती है ।पुस्तक में राज़ खोला गया है कि ट्रंप ने चुनाव जीतने के लिए चीन के राष्ट्रपति शी जिन फिग से ममद की दरकार की थी। रूस भारत का विश्वसनीय दोस्त रहा है लेकिन इस वक्त उसने गोल माल जवाब दिया है ।वहाँ से बयान आया है कि भारत तथा चीन दोनों ही हमारे मित्र हैं ।हमें विश्वास है कि बात चीत से टकराव का समाधान निकल आएगा ।ज़रा इतिहास में जाएँ । सन 1962 की जंग में कहते हैं नेहरूजी ने सहायता के लिए मॉस्को एक विशेष दूत भेजा था। वहाँ के तत्कालीन राष्ट्रपति ने यह टका सा जवाब दे कर उन्हें लौटा दिया था कि वो यानी चीन हमारा भाई  है और आप हमारे दोस्त। अब आप ही बताएँ हम किसके साथ खडे हों। पूरी सम्भावना है कि सम्पूर्ण वातावरण का  यथोचित मूल्यांकन करके सरहद जो हालात बनने के कयास लगाए जा रहे हैं उनसे मुकाबले के लिए सेना को हथियार चलाने की छूट दी गई हो।


यानी पलटवार किया जाएग।रक्षा मंत्री राजनाथसिह के साथ सीडीएस के अलावा तीनों सेना प्रमुखों की 21 जून को हुई बैठक में तय किया गया है। गलवान घाटी में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने जो घोखाधड़ी 15 जून की रात जिस तरह की हरकत की थी उसका जवाब  देने में भारत की सेना बन्दूकों से भी आग उगल सकती है या इससे आगे भी जा सकती है। किसी भी समझौते के तहत भारत के ज़ाबाजो की मौत बर्दाश्त नहीं की जाएगी। विभिन्न समाचा र एजेंसियों ने इस आशय की खबरें दी हैं। यह ज़रूर है कि दोनों ही तरफ से एलएसी के दो कि. मी. के दायरे में कोई भी पक्ष गोली नहीं चलाएगा। समझा जा रहा है कि भारत सरकार और तीनों सेना ने मिलकर चीन को हालात  के मद्देनजर उचित जवाब देने के लिए अंतिम रूप से कमर कस ली है और जल्दी ही चीन को भी इन फैसलों से अवगत करा दिया जाएगा। (लेखक के अपने विचार हैं) 



लेखक : नवीन जैन


वरिष्ठ पत्रकार, इंदौर (एम.पी.)