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ग़ज़ल
हमारा ग़म समझने का ड्रामा
किया फिर आँखों ने रोने का ड्रामा
मिली है ज़िंदगी जब तक चलेगा
ख़ुशी की फ़सलों को बोने का ड्रामा
तुम्हारी ज़िद पे ही खेला गया है
तुम्हारा आज फिर होने का ड्रामा
ग़रीबी से अज़ीयत है अगर तो
करो फिर मेले में खोने का ड्रामा
मेरे बिस्तर की सिलवट जानती है
किया था बीती शब सोने का ड्रामा
लेखक : बलजीत सिंह बेनाम
103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी, हाँसी
ज़िला हिसार(हरियाणा)
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