(नवीन जैन की रिपोर्ट)
इंदौर। मध्य प्रदेश की इस आर्थिक राजधानी की स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती ही जा रही है। हालत एक ओर ऐसे होने लगे है कि कुल मरीजों की संख्या 569 हो गई है। इंदौर अब मुम्बई और दिल्ली के बाद तीसरे स्थान पर आ गया है और कुल मरने वालों की संख्या 37 हो चुकी है।
कुछ विशेष चिंता जता रहे हैं कि अभी कोविड-19 का यह बहुत डरावना चेहरा रुकता नहीं दिखता। सूत्र कहते हैं कि डॉक्टरों की सांसें तक ऊपर नीचे होने लगी हैं। इस महामारी के अंधे और खाली कुएं में बड़े सरकारी ऑफिसर्स, डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ भी गिरने लगे हैं। सरकारी लापरवाही इस स्थिति के लिए काफी कुछ हद तक जिम्मेदार है। यहाँ के लोगों ने अक्षमय अनुशासनहीनता तो यहाँ तक कहा जा सकता है कि विनाशकाल विपरीत बुद्धि, यानि जब विनाश आता है तो सबसे पहले विवेक चला जाता है।
जो समाज के जिम्मेदार लोग हैं वे कहते हैं कि यदि देश को कभी होम मिनिस्टर और लोकसभा स्पीकर देने वाले इस 28 लाख की आज़ादी वाले शहर के तमाम कथित जननेता अपने आरामगाहों से बहार निकलने का ज़रा भी साहस दिखाते तो स्थिति को सामान्य रहते हुए काबू में लाया सकता था। संभागीय आयुक्त आकाश त्रिपाठी का कहना है कि लोक डाउन के बावजूद 13 अप्रैल तक 300 मरीज सामने आए थे, यदि यह सभी सड़कों पर घूम रहे होते तो आंकड़ा दस गुना भी बढ़ सकता था। कलेक्टर मनीष सिंह ने हो सकने वाली विक्रांत खौफ को यूँ स्पष्ट किया कि हालत ऐसे भी हो सकते थे की हॉस्पिटल्स के संसाधन तक कम पड सकते थे, लेकिन ऐसे झंझावत में भी कई मरीजों का इलाज करके घर भेजा जा रहा है। सनद रहे की इंदौर प्रदेश के मध्य में स्थित है और पांच राज्यों की सीमायें मिलती हैं। इंदौर की कई सीमाएं सील कर दी गयी है लेकिन लोगों का क्या भरोसा ?