आग नफरतों की...?


नफरतों की  आग में  जिंदगी  ख़ाक  होती है
खून की  होली   सिर्फ  लाल  होती  है...!


दर्द की  तासीर  एक  होती है...
वो  न हिन्दू  होती  है  न मुसलमान  होती है...!


जिंदगी  के  लिए  कितनी  जद्दोजहद   होती है
माँ  से  पूछो  कब  सुबह,  कब  शाम  होती है...!


ज़िंदगी  कैसे  खिलवाड़  होती है
माँ-बाप से पूछो जिनकी दुनिया औलाद होती है...!


जिंदगी  की  चाहत   बेशुमार  होती है
एक  ही  तरह  की  बहार  होती है...!


इंसानियत से बढ़कर कौनसी तहजीब होती है...!



लेखिका : ममता सिंह राठौर
(गाजियाबाद)