ज़रा फीता तो लाना, भाभी 

व्यंग्य/तोताराम


आज तोताराम घुटनों से भी नीचा, साइड पॉकेट वाला अमरीकी निक्कर पहने अपनी पचास किलो की स्लिम-ट्रिम सिक्स पैक बॉडी में प्रकट हुआ,बोला- भाभी, अन्दर से फीता तो लाना | लगता है, सीना कम से कम दो इंच तो बढ़ ही गया है। 


हमने उसे कोंचा- लगता है तुझे कहीं का राज्यपाल बना दिया गया है या भाजपा ने  राज्यसभा का टिकट दे दिया ?यदि प्रधानमंत्री बन गया होता तो छप्पन नहीं तो पचास इंच का तो हो ही गया होता तेरा सीना।


बोला- हम ऐसे छोटे-मोटे पदों पर फूलने वाले नहीं हैं। हम तो माँ भारती के विनम्र सेवक हैं। आज हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी को जो गौरव प्राप्त हुआ है वह अपूर्व हैं, अद्भुत है। कांग्रेस के छल कपट के कारण आज तक हिंदी को उसका प्राप्य नहीं मिला। मिलता भी कैसे ? नेहरू मन से हिन्दू, भारतीय थे ही कहाँ ? वे तो अंग्रेजी संस्कृति के दीवाने थे। सारी शिक्षा-दीक्षा इंग्लैण्ड में ही हुई।


हमने कहा- इससे क्या फर्क पड़ता है ? गाँधी जी, पटेल, सावरकर, सुभाष आदि सभी इंग्लैण्ड में पढ़े हुए थे |खैर, ऐसा क्या हुआ जो इतना खुश है ? क्या देश के सभी स्कूलों में शिक्षा का माध्यम मातृभाषा कर दिया है ? क्या कोर्ट के सभी काम भारतीय भाषाओं में होने लगे हैं ?


बोला- ऐसा तो कुछ नहीं हुआ लेकिन पता चला है कि ट्रंप ने भारत की धरती पर अपने पवित्र चरण धरने के पूर्व दो बार हिंदी में ट्वीट किया है।


हमने कहा- आजकल तो ऐसे-ऐसे सोफ्टवेयर आने लगे हैं जो किसी भी भाषा का  विश्व की किसी भी भाषा में अनुवाद कर सकते हैं। अब मोदी जी हिंदी में बोलते हैं और ट्रंप को अंग्रेजी में सुनता है। तभी तो जब मोदी जी ह्यूस्टन में 'हाउडी मोदी' में हिंदी में बोले तो ट्रंप को अंग्रेजी में सुना जिसे सुनकर उन्होंने मोदी जी की अंग्रेजी की प्रशंसा भी कर दी। 


बोला- कुछ भी हो लेकिन ट्रंप को इतना तो ख्याल आया कि हिंदी में ट्वीट करें। वरना वे स्वाहिली भाषा में ट्वीट कर देते तो क्या अहमदाबाद वाले 'नमस्ते ट्रंप' कार्यक्रम केंसिल कर देते ? और फिर तुझे पता होना चाहिए कि उन्होंने सचिन, विराट कोहली, विवेकानंद आदि के नाम भी लिए। हालाँकि उन्होंने विवेकानंद का नाम इस तरह लिया जैसे राहुल गाँधी ने बंगलुरु में 'विश्वेश्वरैय्या' का नाम लिया था |लेकिन मोदी जी की शालीनता देख कि उन्होंने ट्रंप का मज़ाक नहीं उड़ाया क्योंकि दोनों ही लोकतंत्र का सम्मान करने वाले महान नेता हैं।


हमने कहा- अब तो केन्द्रीय हिंदी संस्थान आगरा को चाहिए कि ट्रंप को 'प्रवासी हिंदी साहित्यसेवी सम्मान' दे ही दे। जैसे पुर्तगाल के एंटोनियो गुतेरस को बंगलुरु में 'प्रवासी रत्न सम्मान' से नवाज़ा गया था।


बोला- सरकारी सम्मान के लिए सरकार के अपने-अपने गणित होते हैं |हाँ, यदि ट्रंप सारा खर्च वहन करें तो अपने 'तोता-मैना अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सेवी सम्मान समिति' की और से 'विश्व हिंदी रत्न' दिलवा सकते हैं।


हमने कहा- ट्रंप गुजराती गाँधी से भी बड़ा बनिया है जो मुफ्त में सम्मान भी करवाता है और जाते-जाते तीन बिलियन डालर का माल भी बेच जाता है |और तेरे जैसे 'मुंगेरी लालों' को खुश भी कर जाते हैं। अब फुलाए फिर अपना तीस इंच का सीना। कहीं ज्यादा मत फुला लेना लेना नहीं तो मेंढकी की तरह पेट फट जाएगा। (लेख में लेखक के अपने व्यंगात्मक विचार हैं) 



(वरिष्ठ व्यंग्यकार, संपादक 'विश्वा' अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, अमरीका)
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