प्यार का अर्थ ही होता है एक-दूसरे से प्यार, स्त्री पति-पत्नि का प्यार, प्रेमी-प्रेमिका का प्यार, राष्ट्रवाद, राष्ट्र-भक्ति, देश-भक्ति, भाई-चारा, एकता, अखंडता, शान्ति, वफादारी आदि।
वेलेंटाइन-डे है, प्रेम या प्रणय दिवस, लेकिन दिक्कत अभी तक यह है कि कई संकुचित मानसिकता वाले लोग इसे युवक-युवती के देह के आकर्षण से जोड़कर रह जाते हैं, जबकि प्यार एकमात्र ऐसा शब्द है, जो दुनिया के तबाह हो जाने के बाद भी जिन्दा रहेगा। इसीलिए इसे ‘पुरूष-स्त्री’ के संबंधों से जोड़कर देखना इसकी बहुत सीमित व्याख्या है। प्यार का अर्थ ही होता है एक-दूसरे से प्यार, स्त्री पति-पत्नि का प्यार, प्रेमी-प्रेमिका का प्यार, राष्ट्रवाद, राष्ट्र-भक्ति, देश-भक्ति, भाई-चारा, एकता, अखंडता, शान्ति, वफादारी आदि।
हिन्दी-साहित्य की अजर-अमर प्रेम कहानी है उसने कहा था पंडित चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ द्वारा 1913 में लिखी गई थी इस कहानी को आज भी दुनिया की 10 कालजयी प्रेम-कहानियों में शामिल किया जाता है। कहा जाता है कि यह कहानी पे्रम में किए गए त्याग की अनुपम कहानी है। प्रेम का अर्थ कुछ पाना नहीं, बल्कि कुछ खोकर ही उस असली प्रेम तक पहुँचना है। प्रेम नश्वर को अनश्वर में बदल देता है। जिसे हम प्रेम में पाना चाहते हैं, वह दरअसल प्रेम को खो देना है।
शरदचंद्र के उपन्यास देवदास पर अनेक फिल्में बनीं और इसके कई भाषाओं में अनुवाद हुए। इसमें प्रेम का रूपक बताता है कि अपने प्रिय की खुशी के लिए खुद को कैसे बर्बाद किया जाता है। इसी रूपक को ध्यान में रखकर देखें तो पता चलेगा कि तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने प्रेम के भाव से ही संघर्ष किया। देश के लिए जान दाँव पर लगा दी। प्रेम की सही व्याख्या ही कई प्रेम कहानियों का केंद्र-बिंदु रहीं।
जैनेन्द्र कुमार के उपन्यास ‘त्यागपत्र’ में नायिका विवाह और प्रेम में से प्रेम को अंगीकार करती है। यानी प्रेम बंधन नहीं मुक्ति है। वेलेंटाइन या वसंत का यह प्रेम या प्रणव मानव पर ही नहीं बल्कि पूरी प्रकृति पर बरसता है। प्रेम में भीगा हुआ व्यक्ति ही समाज में प्रेम बाँटता है। साहित्य में इसकी कई विधाएँ हैं - लोक-कथाओं से प्रारम्भ हुआ प्रेम विश्व साहित्य में भी अपनी उपस्थिति मजबूती से दिखाता है। फिर जरिया कविता को हो, कहानी का हो, नाटक का हो, उपन्यास का हो, गीत का हो, ग़जल का हो, नज्म का हो, लेकिन कई शोध बताते हैं कि कहानी ही सबसे प्रेम का पुराना और व्यापक जरिया है। प्रेम के असली और सबसे बड़े गुरू कबीर भी तो यही कहते हैं एकाकार हो जाना ही प्रेम की पराकाष्ठा है। वैसे भी प्रेम की गली अति सांकरी बताई गई है, जिसमें दोनों अलग-अलग होकर समा ही नहीं सकते।
हम इतिहास और साहित्य से निकले ऐसे कई चरित्रों को जानते हैं जिन्होंने प्रेम के लिए अपना सब कुछ लुटा दिया। प्रकृति पर सिर्फ मनुष्य एक प्रेमीव्रत का पालन नहीं करते । नेवला, हंस, लंगूर, काला गिद्ध और यहाँ तक दीमक भी अपने जोड़े के प्रति प्रतिबद्ध रहते हैं। शोध में पाया गया है कि पहले चार मिनट ही प्रेम के मामले में अहम् होते हैं । यही वह समय होता है, जब आप अपनी भंगिमा, आवाज और अदा से अपने प्रेमी को प्रभावित करते हैं। रोमियो-जूलिएट, शीरी-फरहाद यदि मशहूर र्हुइं तो तुलसीदास का पत्नी रत्नावली द्वारा झिड़कना भी तुलसीकृत रामायण-रामचरित मानस का सबसे बड़ा कारण बना। रत्नावली तो किसी को याद नहीं रही, लेकिन मानस का पाठन आज भी घर-घर सदियों से किया जाता रहा है और किया जाता रहेगा । तुलसीबाबा ने राम को नया रूप, नया आकार , नया दर्शन, नई परिभाषा वगैरह दी । हाँ, इसकी रचना का एकमात्र कारण रत्नावली ही थी।
बरसों पहले हिन्दी में एक फिल्म बनी थी फागुन । हीरो थे शायद धर्मेन्द्र और हीरोइन वहिदा रहमान । धर्मेन्द्र लेखक रहते हैं। जाहिर है पैसे-कौड़ी की हरदम दिक्कतें रहती थीं। एक दिन होली के अवसर पर धर्मेन्द्र, वहिदा की खूबसूरत साड़ी को रंगों से पूरा भिगो देते हैं। यह साडी दरअसल वहिदा को पीहर से मिली होती है। वहिदा का गुस्से में संवाद है, जीवन में एकाध साधारण साड़ी तो मुझे दिला नहीं सके। मेरी यह पीहर से मिली साड़ी क्यों खराब कर दी। धर्मेन्द्र सिर्फ चुप रहते हैं और वहिदा को थोड़ी देर बाद पता चलता है कि वह कहीं चले गए । सालों बाद तक धर्मेन्द्र लौटते ही नहीं । केवल कहीं बैठकर लिखते रहते हैं और खूब पैसा और मान-सम्मान कमाने के बाद होली के दिन ही घर लौटते हैं, जो बंद रहता है। पूरे घर में जगह-जगह एक से एक खूबसूरत साड़ियाँ टाँग देते हैं और वहिदा को बुलाकर सबसे मँहगी और सुंदर साड़ी देते हैं। उसी को पहनाकर होली खेलते हैं। फिल्म लगभग समाप्त।
ऐसा ही बुरा असर कुछ साल पहले की ही स्थापित हुनरमंद अभिनेत्री स्व. स्मिता पाटिल के मस्तिष्क पर बचपन में पड़ गया था। उनके रंग के कारण उनकी माँ ही उन्हें कालू नाम से पुकारती थीं। तभी से स्मिता बहुत गुस्सैल, चिड़चिड़ी और बदला लेने पर उतारू हो गई थीं। बालीवुड में भी उनकी बहुत खिल्ली उड़ाई गई। उन्हें उनकी जीवन से भरपूर आँखों, गहरी आवाज, निराली मुस्कान के कारण फिल्मकार श्याम बेनेगल ने उन्हें सबसे पहले पकड़ा। श्याम बेनेगल स्मिता को अपनी फिल्म में बुक करने के बाद एक बार यहाँ तक कह गए थे कि मेरा मानना है कि भारतीय महिलाएँ दुनिया की सबसे सुंदर, खूबसूरत स्त्रियाँ होती हैं। स्मिता की कुल 69 फिल्मों में से कुछ शुरूआती फिल्में तो पिट गईं लेकिन फिर उनका जमाना ऐसा चला कि मरणापरांत उन्हें पद्मश्री से नवाजा गया । उन्होंने मात्र 11 साल के कॅरियर में एक बार तो यहाँ तक कह दिया था कि या तो मैं जल्दी मर जाऊँगी या पागल हो जाऊँगी ।ं नोट करें कि इसी स्मिता से राज बब्बर सरीखे अति खूबसूरत और संवेदनशील अभिनेता ने शादीशुदा होने के बावजूद शादी कर ली थी और जब वाकई स्मिता का निधन हो गया तो सबसे ज्यादा राज बब्बर की पत्नी नादिरा बब्बर रोई थीं।
रेखा को तो पहली फिल्म सावन भादो के सेट पर उनके हीरो नवीन निश्चल ने मोटी-मट्ट और काली बत्तख तक कह दिया था तब रेखा इतनी परेशान हो गई थीं कि फिल्मी दुनिया को जंगल समझने लगी थीं, मगर जो तय कर लिया सो तय कर लिया। उन्होंने 400 के आसपास फिल्में दी हैं और कहती हैं कि यह तो अभी शुरूआत है। उनकी एक फिल्म घर देखिए और दूसरी फिल्म इजाजत, पता चलेगा कि प्रेम कितना व्यापक होता है। सालों से रूपवती यह तारिका करोड़ों के दिलों में बसी हुई है। यही व्यवहार अमिताभ बच्चन को ऊँट जैसा कहकर किया गया था। उन्हंे यहाँ तक सुनना पड़ा था कि आईने में चेहरा देखा है अपना, चले आए फिल्मों में काम करने। विद्या बालन को तो दक्षिण की एक फिल्म की आधी शूटिंग से निकाल दिया गया था। लम्बे समय तक विद्या बालन ने आईना ही नहीं देखा। आज रेखा के बाद अमिताभ, स्मिता और विद्या बालन कहाँ है इसके लिए कोई आईना किसी को दिखाने की कतई जरूरत नहीं है।
मराठी नाट्य मंचों से स्मिता पाटील की सलाह पर हिन्दी फिल्मों में आए बेहद हिट अभिनेता नाना पाटेकर तो खुद कहते रहे हैं कि मुझे मालूम है मेरी शक्लओसूरत हम्मालों जैसी है पर यदि लड़कियाँ इसी पर जाँ निसार करती हैं तो मैं भला इसका क्या कर सकता हूँ। नाना की मनीषा कोईराला से प्रेम कहानी आज भी बाॅलीवुड की अद्भुत प्रेम कहानी मानी जाती है और दोनों ने इसे स्वीकार किया था जबकि नाना मल्हार नाम के बेटे के पिता हैं। उधर मनीषा भी केंसर जैसे रोग से उभर चुकी हैं। नाना का यह भी कहना है कि मुंबई के दंगे-फसाद में मैं लोगों की जान नहीं बचाता और चंदा इकट्ठा नहीं करता तो बालकनी में से कूदकर आत्महत्या कर लेता। मनोवैज्ञानिक रूप से कहा जाता है कि नाना पाटेकर के अपने व्यक्तित्व में अलग तरह का खरापन और किसी देहाती उज्जड़पन का आभास भले ही दंे, मगर इसी में उनकी तमाम खूबियाँ छुपी हुई हैं। एक स्त्री अपने पुरूष में इसी खूबी को तलाशती हैं। वैसे भी हमारे शास्त्र कहते हैं कि कोई भी स्त्री अपना सब कुछ अपनी मर्जी से उसी व्यक्ति पर न्यौछावर करती हैं, जो उसे उसके बाप जैसी सुरक्षा दे सके। कई डरपोक राजा-रजवाड़ों को उनकी रानियों ने मौका आने पर चलता कर दिया। आखिर में गुलजार का एक शेर जो वैसे भी हजारों-लाखों लोगों की यादों में महकता रहता है।
हमने देखी है उन आँखों की महकती खुशबू
हाथ से छू के इसे रिश्तों का इल्जाम न दो
सिर्फ एहसास है ये, रूह से महसूस करो,
प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो।
लेखक : नवीन जैन
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