यदि 'बढ़े सो पावे' (नीलामी) वाली स्थिति होती तो हमें न तो मानव देह मिलती और न ही इस भारत भूमि में जन्म जिसमें जन्म लेने के लिए देवता तरसते रहते हैं। यह तो भगवान की फ्री गिफ्ट है जो जीव को मानव पुराने वस्त्र की तरह शरीर त्यागते ही तत्काल पुनः प्राप्त हो जाती है। शरीर भी फ्री मिला और उसके साथ दूसरे स्पेयर पार्ट्स भी फ्री में ही मिले जैसे आँख, नाक, कान, दाँत, कमर, पेट आदि।
कमर - जिसे मुहल्ले के दादा से लेकर वित्त मंत्री तक कोई भी तोड़ सकता है, पेट - जो कभी भरता ही नहीं , आँखें - जिन्हें ज्योति कलश छलकते रहने के बावजूद अँधेरा ही अँधेरा दिखता है। दांत भी फ्री ही मिले मगर एक ही सेट। शक्तिशाली लोगों की तरह दो सेट नहीं- एक खाने का और एक दिखाने का। एक ही सेट को दिखाते रहे और उसी से लोहे के चने भी चबाते रहे। कभी-कभी नाक से भी चने चबाने पड़े। पर आज हालत ख़राब थी। दाहिने तरफ़ की ऊपर-नीचे की दोनों दाढ़ों में भयंकर दर्द। सवेरे-सवेरे बैठे कनपटी पर सेक कर रहे थे कि तोताराम आ गया।
हमारी मुद्रा देख कर बोला- क्या अडवाणी जी तरह मुँह फुला कर बैठा है। न सही असली प्रधान मंत्री , हमारे छाया मंत्री मंडल का प्रधान मंत्री तो है ही तू। आज हमें उसकी चुहल में कोई रूचि नहीं थी। हमने धीरे से कहा- तोताराम, दाढ़ में भयंकर दर्द है।
तत्काल तोताराम ने हमारा हाथ पकड़कर उठाया, बोला- बस इतनी सी बात? चल अभी चलकर निकलवा आते हैं। हमने कहा- तोताराम, आजकल कर्नाटक, तमिलनाडु और न जाने कहाँ-कहाँ मेडिकल की सीटें नीलाम हो रही हैं। क्या पता ऐसे ही पैसे देकर बना हुआ कोई नकली डाक्टर पल्ले पड़ गया तो दाढ़ की जगह प्राण ही निकाल लेगा। मृत्यु अटल सत्य है। कब तक बचेंगे उससे। पर पैसे खर्च करके असमय मरने की बजाय अच्छा है कि घर में बैठे-बैठे शांतिपूर्वक निशुल्क ही मृत्यु को प्राप्त हों।
तोताराम ने हमें कई सन्दर्भ दिए, बोला- खरीद, फरोख्त और नीलामी हर युग में होती रही हैं । सतयुग में सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र ने अपने पत्नी-बच्चों को बेच दिया और ख़ुद नीलम हो गया पर उस सतयुग में भी किसी ने 'बिना गिव एंड टेक' के ज़रा सी भी मदद नहीं की। राहुल गाँधी की तरह निःस्वार्थ भाव से कलावती का कष्ट दूर करने वाला कोई भी नहीं मिला। नरसिंह राव के ज़माने में लोकतंत्र को बचाने के लिए झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के सांसदों ने स्वयं को एक-एक करोड़ में नीलाम कर दिया। मारग्रेट अल्वा अपने बेटे के लिए चुनावों में पार्टी का टिकट नहीं खरीद पाई तो बेटे को देश सेवा का अवसर नहीं मिल सका। अब बेचारा घर में बैठा बोर हो रहा होगा। क्रिकेट की मंडी में खिलाड़ी नीलाम होते हैं।
अगर एकलव्य के पास बोरी भरकर नोट होते तो द्रोणाचार्य की क्या मजाल थी कि एडमीशन से मना कर देता। अरे द्रोणाचार्य क्या, स्वयं धृतराष्ट्र उसे मनेजमेंट कोटे से प्रवेश दे देते। कर्ण अगर किसी मंत्री का पुत्र होता तो परशुराम उसे डिग्री दिए बिना ही भगा सकते थे ? लन्दन में एक लड़की ने इंटरनेट पर अपना कौमार्य नीलाम कर दिया। अमरीका में एक लड़की ने कालेज की फीस चुकाने के लिए इंटरनेट पर अपनी देह नीलाम कर दी। प्रसिद्ध ब्रिटिश माडल केट विंसलेट ने एक अस्पताल के लिए फंड जुटाने के लिए अपना 'किस' नीलाम कर दिया। अगर कांग्रेस को दस बीस सीटें कम मिलती और भा.ज.पा. को बीस-तीस ज़्यादा सीटें मिल जातीं तो संसद के सामने 'घोड़ा मंडी' का नज़ारा देखने को मिलता।
तोताराम हमारे दर्द की चिंता किए बिना चालू रहा । हम सोच रहे थे कि इसके भाषण से होने वाले कष्ट से अच्छा तो दाढ़ का दर्द ही था। तोताराम ने आगे कहा- तू चिंता मत कर। ये घूस देकर एडमीशन लेने वाले इलाज नहीं करते। ये सब पैसे वालों के सपूत हैं। मेडिकल कालेज खोलेंगे। इलाज तो ठीक तरह से पढ़े हुए डाक्टर ही करेंगे। वोट और नोट की राजनीति करने वाले नेता भी भले इन से रिश्ता रखें पर इलाज तो ये भी वास्तविक डाक्टरों से ही करवाते हैं। 2009/06/05 (लेख में लेखक के अपने विचार है)
रमेश जोशी (वरिष्ठ व्यंग्यकार, संपादक 'विश्वा' अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, अमरीका)
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