रे नरभक्षियों !


रे नरभक्षियों !
तुम्हारी वज़ह से आज फिर
मानवता शर्मसार हुई
तुम्हारी हैवानियत ने आज फिर 
एक माँ की कोख को कलंकित कर दिया।


रे नरभक्षियों !
तुमने अपने दुष्कर्मी नाखूनों से खरोंच दिया 
'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः' वाले
भारत माँ के पवित्र शील को 
तुम्हारें पापी मंसूबों ने दागदार कर दिया
ममता रूपी माँ के मन मंदिर को।


रे नरभक्षियों !
तुम्हारी हवस की भूख ने 
छीन लिया किसी हंसते-खिलखिलाते 
परिवार का सारा सुख-चैन 
और वीरान कर दिया एक
चहकती-महकती बग़िया के आँगन को।


रे नरभ़िक्षयों !
तुमने इंसानी शकल में 
फ़रेब का लबादा ओढ़कर 
एक अबला को दिया विश्वासघात
वही अबला जिसने देखा तुममें 
एक भाई लेकिन तुम तो निकले कसाई।


लेखक : देवेन्द्रराज सुथार 
पता- गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। 343025
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