(Sexual Disorders & their variants)
लैंगिक विकृतिया (Sexual Disorders) मानव व्यवहार में एक जटिल व्यवहार है। कभी कभी इस व्यवहार में कुछ असासामान्यताएॅं आ जाती हैं। आइये इनके बारे में ध्यान से समझते है। लैंगिक विकृतिया को तीन में बांटा गया हैं।
1. यौन रोग (Sexual dysfunction) यह कि एक तरह की असामान्यता हैं। जिसमें लैगिंक संतोष की कमी पायी जाती है। इसमें व्यक्ति की क्षीणता प्रायः किसी दैहिक या संरचनात्मक विकृति एनाटोमिकल पैथोलॉजी के अभाव में ही होता हैं।
यौन रोग पुरूषों तथा स्त्रियों में अलग अलग ढंग से होतह हैं। पुरूषों यौन रोग में तीन तरह के होते हैं।
1. अपर्याप्त उत्थानशीलता (Erectile Insufficiency) पुरूषों यौन के इस प्रकार में पुरूष के लिंग में पर्याप्त उत्थापन नही हो पाता है, जिससे रतिक्रिया सफलतापूर्वक नही हो सकता हैं। इसें नपुंसकता भी कहा जाता है।
2. अपरिपक्व स्खलन (Premature Ejaculation):- जब लैंगिक उत्तेजना के प्रारंभ होने तथा स्खलन होने के बीच बहुत कम समय होता है।तो इस तरह के स्खलन कहा जाता हैं। ऐसे से स्त्री यौन संतुष्टि नही हो पाती है और पुरूष को अनावश्यक रूप से शर्मिंदगी का सामना करना पडता है।
3. बाधित कामोताय (Imhibited Orgasm) - यौन रोग के इस प्रकार में पुरूष के संभोग क्रिया के समय करने में अपने आप को असमर्थ पाते हैं। जिसके कारण उन्हे यौन संतुष्टि नही हो पाता है।
यौन रोग महिलाओं में भी होता पाया गया है :
1. लैंगिक उत्तेजन विकृति (Sexual Arousal Disorder) : यौन रोग का यह प्रकार महिलाओं में काफी सामान्य रूप से देखा जाता है। इसमें यौन उत्तेजना के किसी भी तरीके का प्रभाव महिला पर नही पडता हैं। और वह पुरूष द्वारा किए गए सभी लैंगिक उत्तेजनों के प्रति कोई अनुक्रिया नहीं कर पाती हैं। इसे जडता (ठंडक) कहा जाता है।
2. बाघित कामोताप (Inhibited Orgasm) : कुछ महिलाएं ऐसी होती है जिन्हें लैंगिक क्रिया (Sexual Intercourse) से पूर्ण तुष्टि तब तक नही होती है जब तक कि उन्हें अन्य पूरक विघियों से जैसे - भगशेफ (Clitoris) को अंगुली से उत्तेजित करना आदि न किया जाए। महिलाओं की इस अवस्था को बाधित कामोंताप (Inhibited Orgasm) की संज्ञा दी जाती है।
3. वैजानिसमस (Vaginismus) : यौन रोग के इस प्रकार में बिना किसी शारीरिक विकृति के ही संभोग होने के कुछ मिनट पहले ही योनि (Vigina) के मुंह की माॅंसपेशियों में सिकुडन तथा ऐंठन उत्पन्न हो जाती है। जिसके फलस्वरूप रतिक्रिया (Sexual Intercourse) किया जाना संभव नही हो पाता है।
इसके अलावा यौन रोग जो कि दोनों यौन के व्यक्तियों में होता है। जैसे, डाइसपैरियुनिया एक ऐसी ही लैंगिक शिथिलता है जिसमें दर्दपूर्ण संभोग होता है। ऐसी निष्क्रियता कंडीशन में संहवानर में काफी दर्द होने के कारण व्यक्ति संभोग नहीं चाहता है। यह ज्यादातर महिलाओं में अधिक होती है। परन्तु कभी कभी पुरूषों में भी होता हैं।
यौन रोग के कारण :
Causes of Sexual dysfunction
1. दोषपूर्ण ज्ञान Faulty Learning
2. भय और चिंता की भावना Feelings of fear and Anxiety
3. पारस्परिक समस्याएँ Interpersonal Problems
1. दोषपूर्ण ज्ञान (Faulty Learning) इसमें लडकियों को प्रायः बचपन से यह सीखलाया जाता है कि यौन संबंध एक गंदी एवं बुरी चीज होती है। इससे निषेध का दृष्टिकोण विकसित हो जाती है। जिससे बाद में लैंगिक संबंधों के बारे में चिन्ता तथा दोषभाव उत्पन्न हो जाता है चाहे वह संबंध शादी के बाद किया जाए या शादी से पहले किया जाए। इस तरह की मनोवृति एवं दोषपूर्ण सीखना से लड़कियों में लैंगिक उत्पन्न हो जाती है।
2. भय और चिंता की भावना (Feelings of fear and Anxiety) पुरूष तथा महिला में यौन संबंधों के बारे में कुछ अनावश्यक डर एवं चिन्ता कई कारणों से उत्पन्न हो जाती है। जिसका परिणाम यह होता है कि उनमें किसी न किसी प्रकार की लैंगिक निष्क्रियता उत्पन्न हो जाती है।
3. पारस्परिक समस्याएँ (Interpersonal Problems) सैक्स पार्टनर के रिलेशन बीच ठीक नही होने से भी यौन रोग विकसित हो जाती है।
यौन विचलन या झुकाव (Sexual deviation)
यौन विचलन में उन लैंगिक व्यवहारों को रखा जाता है, जो विचित्र (Unique) एवं असामान्य होते है।
यौन विचलन का प्रकार (Type of sexual deviation)
1. वस्तु कामुकता
2. अंग प्रदर्षन
3. नग्नदर्षन रति
4. परपीडन)
5. आत्मपीडन
6. बाल लैंगिगता
7. पशु लैंगिगता
8. फ्राठियूरिज्म
9. भिन्न लिंग वस्त्रधारण
1. वस्तु कामुकता (Fetishism) : वस्तु कामुकता में व्यक्ति कोई भी अजीवित वस्तु जैसे विपरीत लिंग के व्यक्ति के वस्त्र या शरीर को अपने पास रखता है। और उसे स्पर्श कर यौन संतुष्टि प्राप्त करता है। जिस वस्तु को व्यक्ति अपने यौन संतुष्टि का स्रोत बनाता है। उसे वस्तु कामुकता कहा जाता है। वस्तु कामुकता पुरूषों में महिलाओं की अपेक्षा अधिक होती है। और प्रायः वस्तु कामुकता के रूप में विपरीत लिंग के पैर, बाह, जूते, दस्ताना, रूमाल, कलम, पर्स, अंडर गारमेंट्स जैसे पेंटी, ब्रैसरीस तथा अन्य ऐसी ही वस्तुएं उपयोग की जाती है। इन वस्तुओं को स्पर्श कर या चूम कर उन्हें इतनी अधिक यौन संतुष्टि होती है कि वे विपरीत लिंग के साथ संभोग (sexual intercourse) की कोई जरूरत ही नहीं महसूस करते हैं।
2. अंग प्रदर्शन (Exhibitionism) : अंग प्रदर्षन यौन विचलन है जिसमें व्यक्ति अपने यौन अंगों को दूसरों को विशेषकर विपरीत लिंग के व्यक्तियों को अनुपयुक्त अवस्था में दिखाकर यौन संतुष्टि प्राप्त करता है। कभी-कभी इन यौन अंगों को दिखलाने के साथ-साथ व्यक्ति कुछ खास शारीरिक मुद्रा जैसे हस्तमैथुन आदि करके भी दिखलाता है। इस तरह की पुरूषों में ही अधिक होती है। अंग प्रदर्शन का अन्य कारण अन्तवैयक्तिक तनाव माना गया है। प्रायः जब कोई विवाहित पुरूष अंग प्रदर्शन करता है तो यह देखा गया है कि उसका संबंध अपनी पत्नी से कुछ कारणों से तनावपूर्ण रहा होता है और अंग प्रदर्शन कर अपने आप को तनाव से मुक्त करने का बहुत प्रयास करता है। एक अन्य कारण यह भी यह कि ऐसे लोगों में यौन के बारे में जहाॅ तहाॅं से कुछ गलत सूचनाए मिल जाती है, जो उन्हें अंग प्रदर्शन करने के लिए मजबूर कर देती है।
3. नग्नदर्शन रति (Voyeurism) : नग्नदर्शन रति एक ऐसी लैंगिक विसामान्यता यौन विचलन है जिसमें व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्तियों को लैंगिक संबंध करते हुए या महिलाओं को पोषाक बदलते समय कही से छिप कर देखता है तथा मात्र उसे देखने से लैंगिक संतुष्टि होता है। कभी कभी छिपकर देखते-देखते वह इतना उत्तेजित हो जाता हैं कि हस्तमैथुन भी करना प्रारंभ कर देता है उसे स्कोटोफिलिया या इन्सपेक्सनलिज्म भी कहा जाता है। इस तरह यौन विचलन की केवल पुरूषों में ही पायी जाती है।
4. परपीडन (Sadism) इसमें व्यक्ति अपने लैंगिक पार्टनर को पीडा या कष्ट पहुॅंचाकर यौन संतुष्टि प्राप्त करता है। प्रायः वह अपने सैक्स पार्टनर को दाॅंत से काटकर, चाबुक मारकर या सुई चुभोकर पीडा या कष्ट पहुॅंचाता है। इस तरह की (deviancy) पुरूषों में अधिक होती है।
परपीडन के कारणो में यौन के प्रति नकारात्मक मनोवृति, नंपुसकता किसी खास प्रकार के मनोरोग से ग्रसित हो जाना तथा ऐसी अनुभूति जिसमें लैंगिक उत्तेजन का संबंध दर्द आदि से अधिक रहा हो।
5. आत्मपीडन (Masochism) : इसमें व्यक्ति अपने आपको कष्ट पहुॅंचाकर तथा तकलीफ देकर लैंगिक आनन्द प्राप्त करता है।
6. बाल लैंगिकता (Pedophilia) : बाल लैंगिकता में यौन वस्तु बच्चे होते है। बाल लेंगिकता पुरूषों में अधिक होती है। इस तरह की विकृति से ग्रस्त पुरूषों की आयु औसतन 40 साल होती है। वे बच्चों से अपना यौन अंग को पकडवातें है। जिनसे उन्हे आनन्द आता है। यदि पीडित व्यक्ति छोटी उम्र जैसे 10-12 साल की लड़की है तो उसके साथ संभोग भी करता है। इसके चार कारण है -
1. व्यक्तिगत रूप से अपरिपक्व अपराधी
2. प्रत्यागमित अपराधी
3. अनुबंधित अपराधी
4. मनोविकारी अपराधी
7. पशुलैंगिता (Zoophilia) : पशुलैंगिता में व्यक्ति पशुओं के साथ लैंगिक सम्पर्क करता है। प्रायः इस तरह का लैंगिक व्यवहार ग्रामीण पुरूषों एवं लड़कों में अधिक देखने को मिलता है।
8. फ्रोटियूरिज्म (Frotteurism) : फ्रोटियूरिज्म एक ऐसी यौन विचलन है जिसमें व्यक्ति को अपने विपरीत लिंग के आदमी के शरीर को छूने या उसमें रगड मारने में लैंगिक तुष्टि की प्राप्ति होती है। यह भी यौन विचलन का बडा रूप है। जो पुरूषों में अधिक होती है।
9. भिन्न लिंग वस्त्राधारण (Transvestism) : इसे क्रॉस ड्रेसिंग भी कहा जाता है। इसमें व्यक्ति अपने विपरीत लिंग के व्यक्तियों की पोशाक पहनते हैं। और इसी से उसे कामोत्तेजना की प्राप्ति होती है।
समजातिलैंगिकता (Homosexuality) : अपने ही लिंग के व्यक्तियों के साथ लैंगिक संबंध सेक्स करना समजातिलैंगिकता कहा जाता है। महिलाओं में इस तरह के व्यवहार को स्त्रीसमलिंगकामुकता कहा जाता है। पहले को एक बीमार व्यक्ति माना जाता है। परन्तु आधुनिक मनोवैज्ञानिकों एवं मनोचिकित्सकों ने स्पष्ट कर दिया है कि समजातिलैंगिकता किसी प्रकार का व्यक्तित्व अपसमायोजन व्यक्तित्व की दुर्भावना नही होता है। (American Psychiatric Association) ने इसे मानसिक रोग से हटा दिया है। समजातिलैंगिकता के कारण की व्याख्या करने के लिए निम्न कारण बताये गये है।
जैविक, मनोवैज्ञानिक और समाजशास्त्रीय सिद्धांत
जैविक सिद्धांत के अनुसार हार्मोनल अशांति तथा आनुवंशिक कारक की भूमिका अधिक प्रधान है। मनोवैज्ञानिक सिद्धांत के अनुसार का व्यवहार किशोरावस्था में ही समजातिलैंगिकता द्वारा सीख लिये जाते है। मनोवैज्ञानिक सिद्धांत के अनुसार का कारण दोषपूर्ण पारिवारिक संबंधो तथा माता-पिता द्वारा विकृत देख रेख बतलाया है।
लिंग पहचान विकृति (Gender Indentity Disorder) : इसमें कुछ व्यक्तियों का यह पूरा विश्वास होता है कि उन्हें एक गलत शरीर ईश्वर ने दे दिया है। इसका मतलब यह है कि इस तरह की अनुभूति वाले पुरूष को यह महसूस होता हैं कि वे महिलाएॅं ही है परन्तु गलती से शरीर पुरूष का हो गया है। दूसरे तरफ इस तरह की अनुभूति महिला को महसूूस होती है। वे पुरूष है लेकिन शरीर गलती से स्त्री का दे दिया है। ऐसा महसूस होने से स्त्री व पुरूष दोनो बहुत परेशान रहते है। इस तरह कहा जाता है। लिंग पहचान विकृति भी कहा जाता है। (Transsexualism) इसे परा लैंगिकता भी कहा जाता है। तथा कई इसे लिंग डिस्फोरिया भी कहते है। ट्रांससेक्सुअल पर्सन अपने लैंगिक विशेषताओं का हारमोनल उपचार से करते है। पारलौकिक व्यक्ति के दिए जाने वाले हार्मोनल ट्रीटमेंट है जबकि परालैंगिक महिला के लिये दिए जाने वाला हारमोन टेस्टोस्टेरोन है। इस तरह के उपचार के बाद महिलाओं में पुरूषों के गौण यौन गुण माध्यमिक सेक्स विशेषताओं पुरूषों में महिलाओं के गौण यौन गुण विकसित हो जाते है। फिर बाद में सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी द्वारा उनमें नये यौन के अनुसार प्राथमिक सेक्स चार्ट बैक्टीरिया का विकास किया जाता है। अर्थात् जिसमें रोगी के जनेन्द्रिय को लिंग पहचान लिंग पहचान विकृति से सुमेलित कर दिया जाता है। (लेखक के अपने विचार एवं अध्ययन के अनुसार)
डॉ. शिवाली मित्तल