अटलजी भारतीय राजनीति में कभी नहीं भुलाये जा सकते 


 भारत रत्न से सम्मानित, तीन बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ले चुके, केन्द्र में पाँच सालों तक केन्द्र में पहली बार गठबंधन सरकार चलाने में कामयाब रहे स्व. अटलबिहारी वाजपेयी का (25 दिसम्बर 2019, क्रिसमस डे) जन्म-दिवस मनाया जाता है। उनके संबंध में हमारी युवा पीढ़ी बड़े आदर से ही नहीं खूब आश्चर्य से बात करती है। कोई उन्हें अजर-अमर और कोई अपने नाम के अनुरूप अपने सिद्धांतों पर लगभग हर समय अटल कहता है तो कोई कभी अस्त न होने वाला सूर्य। श्री अटलजी की जन्म तिथि के अवसर पर विशाल प्रतिमा का निर्माण उनकी मुख्य कार्यस्थली लखनऊ में किया गया है, जो अष्ट धातु से निर्मित है।


  अटलजी के वाक कौशल्य, हाजिर जवाबी, देशभक्ति, हास्य-बोध सांगठनिक क्षमता, साहित्यिक कर्म (विशेषकर कविता) और समर्पित पत्रकारिता के लिए उन्हें सदियों तक याद किया जाता रहेगा । कहते हैं कि सबसे पहले उन्हें पंडित जवाहरलाल नेहरू (प्रथम प्रधानमंत्री) अपने साथ विदेश ले गए थे। उन्होंने उक्त देश के तत्कालीन राष्ट्रध्यक्ष को अटलजी से यह कहकर मिलवाया था कि इस युवा से कृपया मिलिए। यह हमारे देश के कभी अगले प्रधानमंत्री बन सकते हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जब खुद श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने अटलजी का पहला भाषण सुना तो कह दिया था कि अच्छा हुआ मैंने इस व्यक्ति का भाषण पहले नहीं सुना वरना, मैं भी घोर हिन्दुवादी हो सकती थी। यह स्व. इन्दिराजी के कार्यकाल के हवाले से कहा जाता है कि जब अटलजी बजट पर बोलते थे, तो इन्दिराजी स्वयं सदन में उपस्थित रहती थीं। सन् 1971 का भारत-पाक युद्ध हुआ तो कहते हैं कि अटलजी ने  इन्दिरा गाँधी को दुर्गा तक घोषित कर दिया था।


 जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बुश अटलजी से पहली बार मिले तो उन्होंने यहाँ तक कह दिया था कि मुझे मालूम है कि अटलजी का अंग्रेजी में हाथ तंग है, लेकिन जब वे हिन्दी में बोलते हैं, झंकृत कर देते हैं। जब अटलजी स्व. मोरारजी देसाई  के प्रधानमंत्रित्व में विदेश मंत्री हुआ करते थे, तो उन दिनों पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्राध्यक्ष जिया उल हक मोरारजी भाई के चिढ़चिढ़े स्वभाव के कारण  सीधे अटलजी से ही फोन पर बात करते थे । वैसे भी अपने काॅलेजी दिनों में अटल जी को वैश्विक राजनीति के अध्ययन में बड़ी दिलचस्पी थी। जब जनरल परवेज मुशर्रफ (17 दिसम्बर को मृत्यु दंड प्राप्त) भारत आगरा समिट के लिए आए थे तो अटलजी ने बात यह कहकर शुरू की थी कि आइए जनरल साहब, हम आपकी शक्कर रोज खाते हैं। बड़ी मीठी है वो । दरअसल बात यह थी कि उन दिनों शक्कर के कम उत्पादन के कारण भारत को पाकिस्तान से शक्कर आयात करनी पड़ती थी। हाँलाकि यह  समिट लगभग असफल रही थी। इन्हीं जनरल परवेज मुशर्रफ को कारगिल के अघोषित युद्ध के दौरान अटल जी ने बूचर आॅफ कारगिल घोषित कर दिया था।



 प्रधानमंत्री स्व. राजीव गाँधी की तरह अटलजी ने भारत-पाक के तनावपूर्ण रिश्तों को शान्तिपूर्ण ढंग से हल करने की हरसंभव कोशिश की । वे भारत-पाक बस सेवा की पहली फेरी में खुद सवार होकर भी गए थे। अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के भारी विरोध के बावजूद वे बस सेवा की उक्त फेरी में बाघा (अटारी) सीमा पर तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से भी मिले। ताउम्र अविवाहित रहे अटलजी पत्रकारों का बड़ा सम्मान करते थे क्योंकि उन्होंने खुद एक पत्रकार के रूप में अपना कॅरियर शुरू किया था। एक बार जब तब के वित्त मंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह बजट पर अटलजी की टिप्पणी से आहत होकर इस्तीफे की सोचने लगे तो अटलजी ने फोन पर उनसे कहा कि डाॅक्टर साहब मैंने आपकी राजनीतिक आलोचना की थी, व्यक्तिगत कतई नहीं।  डाॅ. मनमोहन सिंह बहुत खुश हुए। जब अटलजी के मंत्रिमंडल में दिग्गज विधिवेत्ता-राजनेता स्व. राम जेठमलानी कानून मंत्री हुआ करते थे, तो पार्टी दबाव के चलते उन्होंने जेठमलानी से स्पष्ट कहा मैं तुम्हारा इस्तीफा माँग रहा हूँ। वैसे दोनों शतरंज खेला करते थे।


 अटलजी-आडवाणीजी (पूर्व उपप्रधानमंत्री) की जोड़ी अटलजी-लालजी के नाम से मशहूर हुआ करती थी। दोनों साथ में खासकर दिलिपकुमार की फिल्में देखने जाया करते थे । कहा जाता है कि भाजपा और उससे जुड़े सभी संगठन आडवाणीजी को प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे, मगर विरोधी दल आडवाणी के नाम पर सहमत नहीं थे । अटलजी के खुले दिमाग का यह करिश्मा था कि वे चिढ़चिढ़ी वामपंथी नेता ममता बेनर्जी को भी मना लेते थे और लालू प्रसाद यादव जैसे को भी संयम में रहने के लिए समझा लेते थे। इसीलिए अटलजी के निधन पर लालू प्रसाद यादव ने टिप्पणी की थी, बहुत याद आओगे । आपके नाम में बिहारी जुड़ा होने के कारण मुुझे अपने नाम पर गर्व है।


 अटल जी के नए भारत के निर्माण के नए दस संकल्प थे। भारत को आपस में सड़कों से (महानगरों) जोड़ने की परिकल्पना अटलजी की ही थी। उन्होंने ही गाँवों को शहरों से विभिन्न सड़कों से जोड़ने की कल्पना भी की। अटलजी को घर जाकर तब के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भारत-रत्न से सम्मानित किया था। अटजली को खाने-पीने का बेहद शौक था। उनके गुर्दे, मूत्र प्रणाली और घुटनों में लम्बे समय से तकलीफें थीं। इसीलिए जब मुंबई में  उनके एक घुटने का आॅपरेशन हुआ तो संबंधित अस्पताल ब्रीचकेण्डी की कई दिवारों पर रंगीन अक्षरों में लिखा गया था गेट वेल सून(आप शीघ्र स्वस्थ्य हों)। जब वे व्हील चेअर पर  बैठकर कहीं भाषण देने जाते थे तो श्रोता चप्पल-जूते उतारकर सबसे पहले उनके दर्शन करते थे। लता मंगेशकर ने यह कहकर श्रद्धांजलि दी थी-मेरा तो मन ही कहीं नहीं लग रहा है। उनके निधन (16 अगस्त 2018) पर शोकाकुल होते हुए अमित शाह ने यहाँ तक कह दिया था कि आज तो देश का पूरा युवा वर्ग रो रहा है। संदेश साफ है कि अटलजी में युवाओं को अटल विश्वास था। (लेख में लेखक के अपने विचार हैं)


नवीन जैन (MP)