ज़रदारी की बीमारी

जब से समाचार पढ़ाए हम तो भरे बैठे थे । जैसे ही तोताराम आया हम उस पर ही पिल पड़े. यारए यह ज़रदारी भी अजीब आदमी है । पहले नवाज़ शरीफ़ को चरका दिया और अब अमरीका यात्रा पर गया तो पालिन को देखते ही लार टपकाने लगा । कहता है. जितना सुना था उससे ज्यादा खूबसूरत पाया आपको । इसके बाद फोटोग्राफरों ने हाथ मिलाते हुए पोज़ देने को कहा तो क्या बोलता है. ये कहें तो गले लगा लूँ । कोई बात हुई  ठीक है विधुर है । मात्र तरेपन बरस का है पर शिष्टाचार भी कोई चीज़ है । तीन तीन बेटे.बेटियों का बाप है । बच्चे भी क्या सोच रहे होंगेघ् अपने मनमोहन जी को देखोए बेचारे आँख तक नहीं उठाते. पर दारेषु मातृवत ।



तोताराम ने तर्क फेंका. मनमोहनजी की भी भली कही । एक तो जन्मजात अध्यापक दूसरे संयास की उम्र तीसरे पौरुष ग्रंथि निकलवादी और चौथे मैडम साथ में । ज़रदारी की बात और है । एक तो उम्र अभी तो मैं जवान हूँ  दूसरे ज़मींदारी खानदान तीसरे चार.चार की परमीशन और फिलहाल एक भी नहीं । लोग तो पत्नी के मरने के बारह दिन के भीतर ही वैवाहिक विज्ञापन देखने लग जाते हैं । प्रेम का प्रतीक ताजमहल बनवाने वाले शाहजहाँ के हरम में पाँच हज़ार बेगमों का रेवड़ था । और तो और मुमताज़ महल के मरने के बाद भी कई और बेगमें कबाडी । ज़रदारी को दोष देने से पहले दुनिया के बड़े बड़े पत्नीशुदा लोगों का इतिहास तो देख ले । रीगन थेचर पर फ़िदा थेएसरकोजी समुद्र तट पर अठखेलियाँ करती ब्रूनी को देखते ही पत्नी को भूल गए क्लिंटन महाराज की लम्पट लीलाएं तो जगजाहिर हैं ही । मियाँ भुट्टो का किस्सा भी अनजान नहीं है नेहरू जी का भी अडविना पर माधुर्य भाव था । अटल जी ने भी अपने एक इंटरव्यू में कहा था की कुंवारा हूँ  ब्रह्मचारी नहीं । तो फिर ज़रदारी के पीछे ही दुधारी तलवार लेकर क्यों पड़ा है और जब पालिन ने ही एतराज नहीं किया तो तू क्यों परेशान हो रहा है और फिर ज़रदारी को तो भूलने की बीमारी है । मुशर्रफ़ के समय जाँच के दौरान ज़रदारी ने एक मनोचिकित्सक का प्रमाण पत्र भी पेश किया था की उन्हें भूलने की बीमारी है । तो हो सकता है कि भूल से पालिन को उसने कुछ और समझ लिया हो । और फिर यदि दो देशों के नेताओं में मधुर सम्बन्ध होंगें तो उन देशों के सम्बन्ध भी मधुर होंगे ही और इस प्रकार विश्वशांति को बढ़ावा मिलेगा। हमें तोताराम के दूसरे तर्क में दम लगा। (लेखक के अपने विचार हैं)


रमेश जोशी


(वरिष्ठ व्यंग्यकार, संपादक 'विश्वा' अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, अमरीका)


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