आज तोताराम को आने में कुछ देर होगी । अकेले ही चाय पी रहे थे । तभी भगवा वस्त्रधारी एक आकृति हमारे सामने प्रकट हुई । हमें बड़ा अजीब लगा । ठीक है भीख माँगना साधुओं का वैसा ही संवैधानिक अधिकार है जैसा कि समाज सेवकों का चंदा माँगना, दादाओं का रंगदारी वसूल करना मगर कम से कम घर में घुसने से पहले दरवाजा तो खटखटाना चाहिए या फिर बाहर से आवाज़ लगाकर आना चाहिए । हमने रुखाई से कहा- बाबा,भले ही आपको चाय चाहिए या चंदा, पर कम से कम बाहर से आवाज़ लगा लेते तो ठीक रहता । यह क्या कि कसाब की तरह अचानक ही घुस पड़े । बाबा ज़ोर से ठहाका मारकर हँसे । हँसते ही पहचान गए कि यह तो तोताराम है । कहा- क्या महँगाई इतनी बढ़ गई है कि पेंशन से तेरा कम नहीं चल रहा है और भीख माँगनी पड़ रही है ।
तोताराम ने कहा- ऐसी बात नहीं है । बात यह है कि मैंने सन्यास ले लिया है । सोचा जाने से पहले तुझसे विदाई स्वरूप अन्तिम चाय तो पी चलूँ, सो चला आया ।
हमने कहा- तोताराम, तू कौन सा राजा या प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार है जो सन्यास ले रहा है । तेरा तो सारा जीवन ही सन्यास रहा है । दो कुरते, दो पायजामे, एक जोड़ी चप्पल, दो रोटी सुबह, दो रोटी शाम को और बिला नागा एक चाय हमारे साथ । अब इनमें से किस चीज़ की कटौती करने वाला है ? जब राजा लोग ही सन्यास नहीं लेते, मरते दम तक कुर्सी से चिपके रहते हैं , जब तक कि कंस या औरंगजेब जैसा सपूत ज़बरदस्ती कुर्सी से नीचे न पटक दे । प्रिंस चार्ल्स जैसे सपूत कितने होते हैं जो वेटिंग-वेटिंग में ही साठ पार कर जायें । ज्योति बसु और अटल जी ने सन्यास ले लिया है फिर भी चुनाव के समय वक्तव्य जारी करने से बाज़ नहीं आते । सन्यास आश्रम में पहुँच चुके मनमोहन, अडवानी, करुणानिधि , शीश राम ओला सत्ता के हम्माम के चारों तरफ़ चक्कर लगा रहे हैं । तू तो मात्र सड़सठ बरस का है । अभी तो तेरे खेलने-खाने के दिन हैं । अडवानी जी और करूणानिधि के सिर पर बाल ढूँढ़ने से नहीं मिलेगा जैसे कि कारत के सिर पर काला बाल । दशरथ को जब अपने कान के पास एक सफ़ेद बल दिखाई दिया तो उन्होंने राम राज सौंप कर वानप्रस्थ लेने की तैयारी कर लीथी ।
तोताराम बोला- राजाओं और नेताओं की बात छोड़ । वे तो कभी बूढे ही नहीं होते । जब अडवानी जी ने कहा था कि वे अगले चुनाव मतलब कि २०१४ में सन्यास ले लेंगे तो मैंने सोचा था कि पाँच बरस जाते कितनी देर लगती है । फिर तो मैं भी प्राइम मिनिस्टर इन वेटिंग बन जाऊँगा । पर अब कुछ लोंगों ने लाइन काटकर नरेन्द्र मोदी का नाम उछाल दिया है । नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि २०१४ में भी अडवानी जी ही प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे । अब तो मेरे लिए कहीं २०१९ में ही चांस दिखता है बशर्ते कि कोई और भाँजी न मार दे । और तू जानता है इस महँगाई में इतनी उम्र एक मास्टर को तो मिलती नहीं है । बेकार में २०१९ की वेटिंग का टिकट लेने से क्या फायदा । यह जन्म तो जैसा गुज़रा ठीक है । कम से कम अगला जन्म तो सुधार लें । सो भाई साहब अपन तो चले, अलख निरंजन । कहा सुना माफ़ करना ।
तोताराम चला गया पर हमें विश्वास है वह उसी तरह चला आएगा जैसे कि उमा भारती अडवानी जी के चुनाव प्रचार में लौट आई हैं । (लेखक के अपने विचार हैं)
रमेश जोशी
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