सांसद बनने के बाद लोकसभा की शोभा बढ़ाएंगे या जनता की सेवा करेंगे?


डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा


वर्तमान आम चुनाव के दौरान भारत के चुनाव आयोग की निष्पक्षता और संवैधानिक प्रतिष्ठा पूरी तरह से दाव पर लगी हुई है, लेकिन ऐसा क्यों? यह हर आम ओ खास व्यक्ति के रेहन में सबसे बड़ा सवाल है। संविधान लागू होने के बाद के सात दशक में भारतीय लोकतंत्र में जिन संवैधानिक प्रतिष्ठानों और सरकारी संस्थानों को बखूबी खड़ा किया गया, उनमें से एक-एक को गिन-गिन कर सरकार और सत्ताधारी राजनीतिक गठबंधन द्वारा सरेआम धराशाही और, या निष्प्रभावी किया जाना, लोकतंत्र और अर्थव्यवस्था के खात्मे का दु:खद संकेत हैं।


हम लगातार देखते आ रहे हैं कि किस प्रकार से आरबीआई, योजना/नीति आयोग, पुलिस, सेना, सीबीआई, आईबी, एसएससी, न्यायपालिका, एयर इंडिया, बीएसएनएल, पीएसयू, यूपीएसी और सीवीसी के बाद, अब चुनाव आयोग केन्द्र सरकार एवं सत्ताधारी गठबंधन के निशाने पर हैं।


जहां एक ओर ईवीएम के कारण लोगों के मन में निष्पक्ष चुनाव को लेकर लगातार संशय बढता जा रहा है। वहीं चुनावों के दौरान पुलिस तथा सरकारी जांच एजेंसियों/संस्थानों का विपक्षियों के विरुद्ध उपयोग करके छापे डलवाना और एफआईआर दर्ज करवाकर मतदाताओं को गुमराह करने हेतु बनावटी माहौल बनाया जाना। यह न मात्र अनैतिक, अलोकतांत्रित और चुनाव आचार संहिता का खुला उल्लंघन है, बल्कि आने वाले भविष्य के लिये बड़े खतरे का संकेत भी है!


वर्तमान केन्द्र सरकार द्वारा संवैधानेत्तर अर्थात संविधान की परवाह न करते हुए लिये गये निर्णय इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि दक्षिणपंथी और साम्प्रदायिक ताकतों को सत्ता के शीर्ष पर बिठाना संविधान, लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आजादी, सामाजिक न्याय और देश के बहु संख्यक वंचित समुदायों के हितों के लिये कितना बड़ा खतरा है?


सर्वाधिक दु:खद तो यह भी है कि जनता का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद, आंख बंद करके सिर्फ और सिर्फ सरकार की हां में हां मिलाते देखे जा रहे हैं। ऐसे में जनप्रतिनिधित्व के मायने ही बदल गये हैं। इन हालातों में हर पांच साल बाद भारी भरकम चुनावी खर्चे के बाद चुने जाने वाले कथित जनप्रतिनिधियों का जनता के लिये औचित्य भी निरर्थक सा होता जा रहा है। यह बहुत गम्भीर और चिंताजनक विषय है!


अत: जागरूक एवं साहसी मतदाताओं द्वारा अपने-अपने क्षेत्र के उम्मीदवारों के समक्ष सभी राष्ट्रीय मुद्दों को रखकर सार्वजनिक रूप से सीधे सवाल पूछना चाहिये कि चुने जाने के बाद वे अपनी पार्टी के हाई कमान की कठपुतली बनकर लोकसभा की शोभा बढायेंगे या जनता का प्रतिनिधित्व भी करेंगे? (लेख में लेखक के अपने विचार हैं-डे लाइफ डेस्क)


डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा
राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन
मुख्य प्रांतीय संयोजक-आदिवासी धर्म समन्वय समिति
संयोजक-Save UPSC Public Movement
9875066111, 28.04.2019, जयपुर, राजस्थान