कर्मवीर योद्धा


तुम चुनो फूल पर फूल हम काँटो में पंथ बना लेंगे
तुम चढो शिखर पर शिखर हम पगधूलि शीश लगा लेंगे।
तुम कर्मवीर योद्धा बनकरसेना का ध्वज लेकर चलना
हम तो सैनिक है रणभूमि में मस्तक की भेंट चढ़ा देंगे।


मिले असंख्य कीर्ति तुमको हम नींव के प्रस्तर बने रहे
तुम रहो चमकते सूर्य सम हम दीपक बने, जले रहे।
है तुमसे शिलालेख की आभा हमसे तो सिर्फ कतारे हैं
तुम हो तो प्राण धरा पर है हम से सिर्फ पुकारे हैं।


हो तुम मातृभू के स्वर्ण शिखर हम तो आँगन चौबारे हैं
तुमसे है जग में नाम अमर हम से तो सिर्फ दीवारें है।
तुम नेता हो अभिनेता हो तुम ही द्वापर और त्रेता हो
हम तो अनुयायी ठहरे अनुचर ही कहे, गाए जाते।


है हर युग की रीत यही शक्ति में विजय प्रशस्त हुई
खोए हमने धरा गगन जीत तुम्हारी दर्ज हुई
युग युग मे नाम चले नृप का श्मशान नही पूजे जाते।
पूजे जाते चहु और हरी हरिराम नही पूजे जाते।


लेखन : विजय लक्ष्मी जांगिड़ 'विजया'
जयपुर