आज तोताराम आया तो उसने अपने सिर पर गमछा डाल रखा था । हमने सोचा लू से बचने के लिए ऐसा किया होगा । पर जब उसने कई देर तक गमछा नहीं उतारा तो हमने पूछ ही लिया- यार, अब तक इस खोपड़ी को क्यों कस रखा है ? क्या यहाँ कमरे के अन्दर भी लू लग रही है ?
तो बोला- इसके नीचे मैनें ब्रह्मचारी जी का आशीर्वाद छुपा रखा है । हमने उत्सुकतावश उसका गमछा खींच लिया तो पाया कि उसके सिर पर ब्राडगेज की तरह दो समानांतर पटरियाँ उभरी हुई हैं । पूछा- चोट कहाँ लगी ? कहीं लोकतंत्र की रक्षा के लिए सिर तो नहीं फुड़वा बैठे ? बोला- नहीं, यह तो ब्रह्मचारी जी के मारे हुए चिमटे का निशान है । वे जिस पर प्रसन्न होते हैं उसके सिर पर चिमटा फटकार देते हैं । और जिस पर चिमटा पड़ जाता है वह यदि प्रधानमंत्री नहीं तो कम से कम राज्य सभा का सदस्य तो बन ही जाता है ।
हमें बड़ा गुस्सा आया । आशीर्वाद देने का यह कौनसा तरीका है ! हनुमानजी से बड़ा ब्रह्मचारी कौन होगा पर वे तो किसी को आशीर्वाद के रूप में गदा नहीं मारते । बल्कि भक्त के संकट का मोचन ही करते हैं । विवेकानंद जी भी ब्रह्मचारी ही थे पर उन्होंने तो प्रेम और कर्म का संदेश दिया । यह कैसा ब्रह्मचारी है ?
पूछा- यह वही तो नहीं है जो बुज़ुर्ग महिलाओं को हिकारत से डोकरी और युवतियों को छोकरी कहता है ? तोताराम ने हामी भरी तो हमने कहा- देखो, जो सच्चे ब्रह्मचारी होते हैं वे महिलाओं को माता-बहिन कहते हैं ,बुढ़िया या गुड़िया नहीं कहते ।
तोताराम ने सफाई दी- फक्कड़ संत ऐसे ही होते हैं । वे अपने व्रत को निभाने के लिए महिलाओं से कोई रिश्ता नहीं जोड़ते । इस प्रकार के संबोधनों से वे महिलाओं से एक दूरी बना कर रखना चाहते हैं ।
हमने कहा- हमें तो ऐसा ब्रह्मचर्यव्रत आरोपित और हठयोग जैसा लगता है । यदि व्यक्ति ब्रह्मचर्य धारण करके सहज नहीं रह सके तो उसे फिर गृहस्थ बन जन चाहिए । तब व्यक्ति सहज हो जाता है। और कई ऐसी ही ब्रह्मचारिणियों को देख ले । वे कौनसी इससे कम हैं । वे भी ऐसे ही बोलती हैं जैसे कि सामने वाले को अभी झाड़ू मार देंगीं । कई लोग बड़े-बड़े सपनों के चक्कर में टाइम निकल देते हैं, बाद में कोई जुगाड़ नहीं बैठता तो ब्रह्मचर्य का नाटक करने लग जाते हैं । तुझे इन चक्करों की क्या ज़रूरत है ? आराम से पेंशन ला, शान्ति से घर में बैठ और राम-राम कर ।
पर तोताराम ने सीधे-सीधे हमारी बात नहीं मानी । बोला- चुनाव परिणाम आने तक तो इस आशीर्वाद को कायम रखता हूँ । इसके बाद जैसी परिस्थिति होगी कर लेंगे । क्या पता चांस लग ही जाए ।
हमने कहा- तेरी मर्जी । पर याद रख, तुझे कोई घास डालने वाला नहीं । बोली लगेगी भी तो जीते हुए एम.पी.यों की । ये जो अमरीका के राजदूत दिल्ली और हैदराबाद के चक्कर लगा रहे हैं, ये जो कारपोरेट जगत सक्रिय हो रहा है, ये जो काले धन वाले कवायद कर रहे हैं ये तोताराम के लिए नहीं वरन जीते हुए जनसेवकों की बिकाऊ आत्माओं के लिए कर रहे हैं । तुझ जैसे लोग केवल चिमटा खाने के लिए ही होते हैं । रही बात ड्रेसिंग करवाने की सो आज नहीं तो दो चार दिन बाद करवा लेना । पर अच्छा हो, कोई एंटीबायोटिक ही ले ले वरना यदि सेप्टिक हो गई तो तेरा सिर ही काटना पड़ेगा । (लेखक के अपने विचार हैं)
रमेश जोशी
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